महक भाई जो प्रश्न आपने उठाए हैं उनका जवाब तो आपकी पोस्ट पर ही अलग अलग कई विद्वान दे चुके हैं लेकिन जब आपको समझना ही नही है तो कोई आपको समझा कैसे सकता है । * हमें आपके आहार पर कोई आपत्ति नही है लेकिन आप हमारे आहार पर ऐतराज़ जताते हुए हमें पापी घोषित कर चुके है और चाहते है कि मांसाहार करने के बदले मे हमें मृत्यु दंड दे दिया जाए ये आपका निजी विचार है जो की ग़लत है और इससे सभी शाकाहारी भी सहमत नही हैं । **हमारा सवाल तो यह है कि बकरा हो या आलू टमाटर जब दोनो ही जीवधारी हैं तो फिर ज़्यादा निरीह तो यह सब्जियाँ हैं जो मरते समय शोर पुकार फ़रियाद भी नही कर सकती इन सब्जियों की हत्या करने का अधिकार आप किस तर्क से पा सकते है ।
*** पेड़ों मे भी नर मादा होते है फूल फ़र्टिलाइज़ेशन के बाद फल बन जाता है बाज़ार मे जो फल आते हैं वह पेड़ द्वारा त्यागे नही होते ब्लकि उन्हे पेड़ से तोड़ा गया होता है पेड़ के लिए फल ठीक ऐसा ही है जैसा कि गर्भवती औरत के लिए उसका भ्रूण यदि आप मनुष्य का भ्रूण नही खा सकते तो फिर आप फल खाने के लिए क्या तर्क पेश करेंगे ।
**** मनुष्य को खाने के लिए अंतरिक्ष से किसी प्राणी के आने का इंतज़ार करने की ज़रूरत नही है अरबो खरबोँ पैरासाइट और बैक्ट्रीया मनुष्य के जिस्म में कालोनी बनाकर बसे हुए हैं । यह दुनिया ऐसी ही है हम जीवों का आहार करते हैं और जीव हमारा ।
***** मनुष्य के मरने के बाद जो लोग चिता जलाते हैं वे मृत शरीर में आबाद असंख्य जीवों की हत्या करते है ।
****** चिता जलाने से वन कटते हैं और ग्लोबल वार्मिँगं बढ़ता है ग्लोबल वार्मिगं के बारे में चिंतित बुद्धिजीवियों को इसका विरोध करना चाहिए हम तो किसी की धार्मिक परंपरा पर आपत्ति न पहले करते थे न अब करते हैं । अलबत्ता इस्लाम के साइंटिस्ट दृष्टिकोण की आलोचना करने वालो को जवाब देना ज़रूरी होता है तो मजबूरन इतना लिखना पड़ा आशा है कि स्वस्थ संवाद की परंपरा का निर्वाह करेंगे ।
15 comments:
किसी मुस्लमान ने किसी जैनी महाराज के रहन सहन और खान पान पर टिका टिपण्णी नहीं की .
फिर मुसलमानों के रिवाज की आलोचना क्यों ?
आप ऐतराज़ करोगे तो मुसलमान पर सच आपके सामने रखना फ़र्ज़ हो जाता है ,फिर उसे आप बर्दाश्त किया कीजिये .
मुसलमान गाय कटे तो हंगामा और अब हिन्दुओं के पांच सितारा होटलों में कोमन वेल्थ खेलों में खुद हिन्दू गाय परोसेंगे तो न बजरंग दल विरोध कर रहा है और न ही कोई हिन्दू NGO . माल अपनी जेब में आ रहा है तो सब चुप हैं . मुसलमान कसाई की जेब में जाए तो हंगामा. किसी को गाय से दिलचस्पी नहीं है , सब झगड़ा ये है की माल मेरी जेब में जाना चाहिए .
@प्रिय अयाज़ भाई
आलू टमाटर कबसे जीवधारी हो गए ? कृपया बताएं अथवा कोई वैज्ञानिक प्रमाण पेश करें
आपने अरबों ,खरबों पैरासाइट और बैक्ट्रीया द्वारा मनुष्य के शरीर में होने और उसे खाने की बात की तो इतना तो आप भी समझ सकते हैं की इस प्रक्रिया में वो हमारी हत्या या हमारा जीवन नहीं समाप्त कर पा रहें हैं ,अगर आपको इनके द्वारा अपना जीवन समाप्त करवाने में कोई हर्ज या आपत्ति नहीं है तो क्यों इन जीवों के कारण कोई भी मर्ज़ या रोग पैदा होने पर उसकी चिकित्सा की जाती है विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के द्वारा ?? आप ना करें ऐसा और इन्हें अपना जीवन समाप्त करने दें प्रकर्ति का नियम मानकर जैसे की आप अन्यों की हत्या को जायज़ ठहराते हैं ,दुनिया की सभी चिकत्सा पद्धतियों की दवाइयों और इलाज के तरीकों को तो फिर कूड़े की बाल्टी में डाल देना चाहिए आपके मुताबिक क्योंकि उन जीवों द्वारा हमें खाने को और हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता को नष्ट किये जाने को भी हमें प्रकर्ति का ही नियम मानकर उसका कोई उपाए ही नहीं करना चाहिए और अपना जीवन समाप्त होने देना चाहिए इनके द्वारा
जहाँ तक शाकाहार में भी हिंसा का सवाल आप कर रहे हैं तो अपने दिल पर हाथ रखकर जवाब दीजियेगा की अत्यधिक हिंसा किस्में है ?,मतलब आपका विवेक ये कहता है की जब हिंसा दोनों आहारों में है तो हिंसा का वो तरीका चुनो जिसमें अत्यधिक हिंसा हो
एक बात समझ लीजिए मनुष्य कभी भी बिना शाकाहार ग्रहण किये और पूर्णतः मांसाहार पर आश्रित होकर जीवित नहीं रह सकता है जबकि बिना एक भी मांसाहारी पदार्थ लिए बिना भी मनुष्य पूर्णतः शाकाहार पर आश्रित होकर अपना जीवन पूर्ण स्वस्थता के साथ जी सकता है
सभी जानते हैं की मांसाहार में अत्यधिक हिंसा और क्रूरता शामिल हैं लेकिन अगर आप शाकाहार में मांसाहार से अधिक हिंसा मानते हैं तो एक काम करिये -
शाकाहार और मांसाहार के अंतर्गत जो भी चीज़ें आती हैं तो आप प्रत्येक शाकाहारी भोज्य पदार्थ का त्याग कर दीजिए और मैं प्रत्येक मांसाहार भोज्य पदार्थ का , वैसे मैं तो मांसाहार करने की कभी सोच भी नहीं सकता लेकिन कुछ सालों पहले अंडे ज़रूर खाता था लेकिन जबसे पता चला की ये भी मांसाहार के अंतर्गत ही आता है तबसे मैंने इन्हें कभी हाथ भी नहीं लगाया
इसी प्रकार से कृपया आप भी करें ,जो भी चीज़ शाकाहार के अंतर्गत आती है उसका पूर्णतः त्याग कर दें और पूर्णतः मांसाहारी होकर दिखाएँ
आपकी और मेरी बहस का अंत वहीँ हो जाएगा
@अनवर अहमद जी
मेरा विरोध मांसाहार से है मुसलमान या किसी धर्मविशेष से नहीं ,जो लोग भी मांसाहार करते हैं फिर चाहे वो हिंदू हो, मुस्लिम हों ,सिख हों या ईसाई हो मैं उन सबका विरोध करता हूँ फिर चाहे वो गाये को मारकर खाएं या सूअर को ,बकरे को मारकर खाएं या मुर्गे आदि को , आप कृपया इसमें धर्म को लाकर इसे सांप्रदायिक रंग देने से बचें
महक
महक जी,
बे-मतलब है, इन्हे समझाना। तत्व, तथ्य और सार्थक चर्चा का इनसे दूर दूर का सम्बंध नहिं।
जो हिंसा इनके लिये जरूरी नहिं उसी का समर्थन लेके बैठे है। इनसे चर्चा में भी हजारों जीवों की विचार हिंसा हो जाती है।
आप आईये मेरे ब्लोग पर एक कविता का आनंद लिजिये:
http://shrut-sugya.blogspot.com/2010/08/blog-post_26.html
महक जी शायद आपने अहमद साहब की पोस्ट को ठीक से नही पढ़ा वह तो सिर्फ यह समझा रहे है कि शाकाहार के नाम पर जो कुछ भोजन किया जाता है वह भी जीव हत्या ही करके हासिल किया जाता है उन्होने न आपको कुछ छोड़ने के लिए कहा न ही खुद कुछ छोड़ने की बात की ब्लकि समझाने के लिए सिर्फ कुछ उदाहरण दिए है
@आदरणीय सुज्ञ जी
आपकी बात एकदम सही है ,अगर सभी लोग आपसी संवाद और बहस से ही सत्य को स्वीकार कर लें तो कानून और प्रतिबन्ध आदि की ज़रूरत ही ना पड़े लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा होता हुआ प्रतीत नहीं होता
महक
महक जी निराशावादी बात मत कीजिए क्योकि हमें तो आपसे बहुत उम्मीदें है । आप तर्क से अपनी बात पेश कीजिए हम बिल्कुल मान लेंगे । सिर्फ अपने मन के विचार से नही कि बस ये गलत है तो गलत है अपितु सारी दुनिया पर नज़र डालकर खूब विश्लेषण करें ।
Shakahar main Nonvej kidhar se aa gaya.
Are bhai agar log janwaro ko nahi khayenge to janwar logo ko kha jaynge.
Jara kisi kishan se jaa kar ke puchiye ki Neel Gay ke bare main uski kya rai hai.
Jiasa khaye aan waisa rehe mann
Nice post .
Please come to my blog to read my new article about Namaz on road .
यह भी विचारणीय है कि एक तरफ तो जीव को आदि अमर अजर बताते हैं तो दूसरी तरफ जीव हत्या की बात करते हैं। यह भी विचारणीय है कि एक तरफ तो कर्मानुसार फल भोगने की बात करते हैं तो दूसरी तरफ जीव हत्या को पाप व जघन्य अपराध की संज्ञा देते हैं । अफ़सोस इस बात का है कि धर्मशास्त्र व विज्ञान दोनों की अनुमति के बावजूद भी इस विषय को विवाद का विषय बनाया गया व बनाया जा रहा है, और कुछ मांस खाने वाले हिन्दू भाई भी रुग्ण मानसिकता का शिकार होकर मांसाहार का विरोध कर रहे हैं।
Blogger rahul said...
जानवरो की हत्या पर वही कानून होना चाहिये .जो इंसानो की हत्या पर है. बल्कि उससे भी ज्यादा कठोर कानून होना चाहिये. क्यो कि जानवर इंसानो की तरह अपनी पीड़ा नही बता सकता और न ही अपना बचाब कर सकता है. और जो भी लोग इन भोले और बेजुबान जानवरो की निर्मम हत्या कर रहे है . वो भी अगले जन्म मे इसी तरह निर्ममता पूर्वक काटे जायेँगे. और उन्हे अपने कुक्रत्यो का दंड तो हर हाल मे भोगना ही पड़ेगा.
20 August 2010 6:59 AM
https://www.blogger.com/comment.g?blogID=4825919257447574165&postID=5677234602910648559
chal be katuve atankwadi.. ja ke apni behan ki gand maar aur ya muhammad ya muhammad chilla..
Post a Comment