Tuesday, November 8, 2011

विज्ञान के युग क़ुरबानी पर ऐतराज़ क्यों ?

ZEAL: ईद मुबारक
विज्ञान के युग क़ुरबानी पर ऐतराज़ क्यों ?
ब्लॉगर्स मीट वीकली 16 में यह शीर्षक देखकर लिंक पर गया तो उन सारे सवालों के जवाब मिल गए जो कि क़ुरबानी और मांसाहार पर अक्सर हिंदू भाई बहनों की तरफ़ से उठाए जाते हैं।
पता यह चला कि अज्ञानतावश कुछ लोगों ने यह समझ रखा है कि फल, सब्ज़ी खाना जीव को मारना नहीं है। जबकि ये सभी जीवित होते हैं और इनकी फ़सल को पैदा करने के लिए जो हल खेत में चलाया जाता है उससे भी चूहे, केंचुए और बहुत से जीव मारे जाते हैं और बहुत से कीटनाशक भी फ़सल की रक्षा के लिए छिड़के जाते हैं।
ये लोग दूध, दही और शहद भी बेहिचक खाते हैं और मक्खी मच्छर भी मारते रहते हैं और ये सब कुकर्म करने के बाद भी दयालुपने का ढोंग रचाए घूमते रहते हैं।
यह बात समझ में नहीं आती कि जब ये पाखंडी लोग ये नहीं चाहते कि कोई इनके धर्म की आलोचना करे तो फिर ये हर साल क़ुरबानी पर फ़िज़ूल के ऐतराज़ क्यों जताते रहते हैं ?
अपने दिल में ये लोग जानते हैं कि हमारी इस बकवास से खुद हमारे ही धर्म के सभी लोग सहमत नहीं हैं। इसीलिए ये लोग कमेंट का ऑप्शन भी बंद कर देते हैं ताकि कोई इनकी ग़लत बात को ग़लत भी न कह सके।
सचमुच यह लेख बहुत अच्छा है,

5 comments:

Anonymous said...

मैं भी मानती हूँ कि लेखन को भावनाएं भड़काने के लिए उपयुक्त नहीं किया जाना चाहिए | किन्तु बकरा ईद पर दी जाने वाली कुर्बानी पर मेरे कुछ सवाल हैं | जिन्हें मैंने अपनी पोस्ट पर लगाया है | आपसे भी प्रार्थना कर रही हूँ कि वहां आयें और समाधान करें | यदि आप चाहें तो इस टिप्पणी को प्रकाशित न करें | लिंक दे रही हूँ

http://ret-ke-mahal-hindi.blogspot.com/2011/11/blog-post_08.html

DR. ANWER JAMAL said...

दिव्या जी का स्टाइल यह है कि जो उनके जी में आता है, वह कल्पना कर लेती हैं और फिर उस कल्पना को सच मान लेती हैं। इसके बाद वे उसे लेकर दो चार पोस्ट तैयार कर लेती हैं और फिर उन्हें अपने ब्लॉग पर छापती रहती हैं। पिछले साल की तरह इस बार भी उन्होंने इस्लामी क़रबानी पर ऐतराज़ जताया और निहायत भौंडे अंदाज़ से जताया। उन्हें पता था कि उनकी इस घिनौनी हरकत को हम हरगिज़ पसंद नहीं करेंगे, लिहाज़ा उन्होंने हमारी शख्सियत पर भी कीचड़ उछालना ज़रूरी समझा और जब हमने बताया कि जो वह समझती हैं , हक़ीक़त उसके खि़लाफ़ है तो उन्होंने हमारे कमेंट को पब्लिश ही नहीं किया। वह कमेंट यह है -

डाक्टर दिव्या श्रीवास्तव साहिबा !
1- बदगुमानियों का तो कोई इलाज होता ही नहीं है। हम ने पोपट लाल नाम के किसी ब्लॉगर के बारे में आज ही सुना है और किलर झपाटा बनकर भी हम नहीं लिखते इसे किलर झपाटा जी भी जानते हैं और वह ईश्वर भी जो कि हरेक कर्म का साक्षी है।
अश्लील गालियां हमने अपने किसी विरोधी को आज तक नहीं दीं और न ही हम इसे जायज़ समझते हैं।
झूठ हम बोलते नहीं और सच का यक़ीन आप न करें तो आपकी मर्ज़ी।
किलर झपाटा जी को हमने एक बार आपको गाली देने से मना किया था तो उन्होंने इसी जुर्म में खुद हमें और हमारे परिवार को कई दिनों तक गंदी गालियां बकी थीं। इसे भी शायद आपने देखा होगा।

2-आपने हमारे किस लेख से समझा कि हम तिलमिला गए हैं ?
तिलमिलाहट और झल्लाहट तो आपके लेख और आपकी टिप्पणियों में नज़र आ रही है। इसी झल्लाहट में आप यह भी न देख पाईं कि कायस्थ भी मांस खाते हैं।
आपने जिस जाति में जन्म लिया उसी को राक्षस और दरिंदा घोषित कर दिया ?
समुद्रतटीय प्रदेशों में बसने वाले हिंदुओं का आहार भी मछली आदि जलीय जीव ही हैं। आपको कुछ भी कहने से पहले भारत की संस्कृति और भारतीयों के खान-पान की विविधता को भी जान लेना चाहिए था।

आज आपकी टिप्पणी देखी तो इतना लिखना ज़रूरी समझा।
अब चाहे आप इसे छापना या मत छापना।
ख़ैर आज बक़रीद है और आज ब्लॉगर्स मीट वीकली की 16 वीं क़िस्त भी है।
आपकी पोस्ट भी इसमें सुशोभित है,
तशरीफ़ लायें।
साभार !!!

DR. ANWER JAMAL said...

See :
अहिंसा के नाम पर इस्लाम के खि़लाफ़ दुष्प्रचार क्यों ?
http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/11/zeal.html

DR. ANWER JAMAL said...

@ Shilpa ji ! महापुरूषों ने धर्म की शिक्षा दी और उसके नियमों का पालन करके भी दिखा दिया। उनके मानने वालों को चाहिए कि उन्होंने जिस काम को जैसे और जिस भावना के साथ करना बताया है, उसे उसी तरीक़े से किया जाए।
पशु बलि या क़ुरबानी कोई नया काम नहीं है बल्कि जो सबसे प्राचीन ग्रंथ इस धरती पर पाया जाता है , उसमें भी इसका वर्णन मिलता है।
बाद में नर बलि की प्रथा भी शुरू हो गई थी।
हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम के ज़रिये में साफ़ बता दिया गया कि नर बलि ईश्वरीय विधान में वैध नहीं है।
बलि और क़ुरबानी का सही रूप हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम के ज़रिये सब को बता दिया गया और पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भी उसी प्राचीन सनातन परंपरा का पालन किया क्योंकि वे किसी नये धर्म की शिक्षा देने नहीं आए थे बल्कि प्राचीन धर्म की संस्थापनार्थाय ही आए थे।
इस्लाम में क़ुरबानी का क्या रूप है ?
इसकी जानकारी निम्न पोस्ट में दी गई है और लोगों को चाहिए कि क़ुरबानी को उसके सही रूप में ही अदा करें ताकि उन्हें उन गुणों की प्राप्ति हो सके जो कि क़ुरबानी से वांछित हैं।
The message of Eid-ul- adha विज्ञान के युग में कुर्बानी पर ऐतराज़ क्यों ?, अन्धविश्वासी सवालों के वैज्ञानिक जवाब ! - Maulana Wahiduddin Khan

सुज्ञ said...

क्या विज्ञान के युग में जीव हिंसा को मान्यता मिल चुकी है?
सभी जगह जीव है, सभी एकदीसरे को मारते मरते खाते है। तो विज्ञान को बहाना बनाकर क्यों न अराजकता फैला दी जाय?
यही चाहते है न ? तब तो मानव को सावधान हो जाना चाहिए