Sunday, February 16, 2025

गठिया रोग (जोड़ों का दर्द): आयुर्वेदिक इलाज और प्रभावी उपचार

 

गठिया या जोड़ों का दर्द आजकल एक आम समस्या बन गई है, जो उम्रदराज लोगों के साथ-साथ युवाओं को भी प्रभावित कर रही है। यह रोग जोड़ों में सूजन, अकड़न और दर्द पैदा करता है, जिससे दैनिक गतिविधियाँ मुश्किल हो जाती हैं। आयुर्वेद के अनुसार, गठिया का मुख्य कारण शरीर में वात दोष का असंतुलन और विषाक्त पदार्थों (आम) का जमाव है। IMDADI SHIFAKHANA में प्राकृतिक चिकित्सा के माध्यम से गठिया के मूल कारणों को दूर करने पर ध्यान दिया जाता है। 


### **गठिया के प्रकार और कारण** 
1. **ऑस्टियोआर्थराइटिस**: उम्र बढ़ने के साथ जोड़ों के कार्टिलेज का घिसना। 
2. **रुमेटाइड अर्थराइटिस**: प्रतिरक्षा प्रणाली की गड़बड़ी से जोड़ों में सूजन। 
3. **गाउट (वातरक्त)**: यूरिक एसिड का जमाव। 

**मुख्य कारण**: 
- अनियमित खानपान और मोटापा 
- शारीरिक निष्क्रियता 
- हार्मोनल असंतुलन 
- चोट या अधिक शारीरिक श्रम 
- वंशानुगत कारण

### **लक्षण** 
- जोड़ों में तेज दर्द और सूजन 
- सुबह उठते समय अकड़न 
- चलने-फिरने या सीढ़ियाँ चढ़ने में तकलीफ 
- जोड़ों से आवाज़ आना (क्रेकिंग) 
- प्रभावित जगह पर लालिमा या गर्माहट 

### **आयुर्वेदिक इलाज और उपाय** 
**IMDADI SHIFAKHANA** में गठिया के उपचार के लिए शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालकर वात दोष को संतुलित किया जाता है। प्रमुख तरीके: 

1. **हर्बल औषधियाँ**: 
   - **अश्वगंधा**: जोड़ों की मजबूती और दर्द निवारण। 
   - **शल्लकी (बोसवेलिया)**: सूजन कम करने में प्रभावी। 
   - **गुग्गुल**: जोड़ों का लचीपन बढ़ाता है। 
   - **हल्दी और अदरक**: प्राकृतिक एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण। 

2. **पंचकर्म चिकित्सा**: 
   - **जनु बस्ती**: घुटनों पर औषधीय तेल से सेक। 
   - **अभ्यंगम**: गुनगुने तिल के तेल से मालिश। 
   - **पिच्छा बस्ती**: जोड़ों की जकड़न दूर करने हेतु। 

3. **योगासन**: 
   - **ताड़ासन (माउंटेन पोज़)**: पोस्चर सुधारे। 
   - **त्रिकोणासन**: जांघों और कमर के जोड़ों को मजबूत करे। 
   - **गोमुखासन**: कंधे और घुटनों की अकड़न दूर करे। 

4. **आहार सुझाव**: 
   - गर्म पानी, हल्दी दूध, और अदरक की चाय पिएँ। 
   - विटामिन सी युक्त फल (आंवला, संतरा) और हरी सब्जियाँ खाएँ। 
   - प्रोसेस्ड फूड, तली-भुनी चीजें, और अधिक नमक से परहेज। 

### **घरेलू नुस्खे** 
- **सरसों का तेल और लहसुन**: तेल गर्म करके जोड़ों पर मालिश करें। 
- **एप्सम सॉल्ट (सेंधा नमक) सेंक**: गर्म पानी में डालकर सिकाई करें। 
- **मेथी के बीज**: रातभर भिगोकर सुबह खाली पेट खाएँ

### **जीवनशैली में सुधार** 
- **वजन नियंत्रण**: मोटापा जोड़ों पर दबाव बढ़ाता है। 
- **नियमित व्यायाम**: तैराकी और साइकिलिंग जैसे लो-इम्पैक्ट वर्कआउट। 
- **गर्म पानी से नहाना**: मांसपेशियों को आराम देता है।

### **IMDADI SHIFAKHANA की विशेषता** 
- **निजीकृत उपचार योजना**: रोगी की प्रकृति (वात, पित्त, कफ) के अनुसार। 
- **प्राकृतिक दवाओं का पैकेज**: 100% हर्बल, कोई साइड इफेक्ट नहीं। 
- **नियमित फॉलो-अप**: स्वास्थ्य में सुधार की मॉनिटरिंग। 

**विशेष ऑफर**: गठिया के रोगियों के लिए निःशुल्क योग सत्र! 

### **निवारण के उपाय** 
- ठंडे वातावरण और AC से बचें। 
- जोड़ों को ढककर रखें। 
- नियमित रूप से हल्दी और दालचीनी का सेवन करें। 

**समापन** 
गठिया रोग को नजरअंदाज करने से जोड़ों को स्थाई नुकसान हो सकता है। प्रकृति आधारित उपचार और सही जीवनशैली अपनाकर इस पर विजय पाई जा सकती है। IMDADI SHIFAKHANA में हमारे आयुर्वेदिक विशेषज्ञ आपको दर्दमुक्त जीवन की ओर ले जाने के लिए तैयार हैं। 

🌿 **"प्रकृति में छुपा है स्वस्थ जीवन का राज़!"** 

--- 
**IMDADI SHIFAKHANA** – आयुर्वेद की पुरातन ज्ञान, आधुनिक स्वास्थ्य समाधान।

Tuesday, January 24, 2023

खरबूज़ा


 



खरबूजे कई रंग के होते  हैं। ज्यादातर हल्के पीले रंग के होते हैं। इसका स्वाद हल्का मीठा और स्वभाव गर्म और नम होता है। इसको खाने से पेट सही रहता है। इसके कई फायदे हैं। 1. खरबूज खाने से कब्ज़ खत्म हो जाता है। 2. यह  पत्थरी तोड़ता है। 3. खरबूजा मूत्रवर्धक होता है। 4. दोपहर और शाम के खाने के बीच में अगर इसका सेवन किया जाए तो यह शरीर को मोटा और तरोताजा बनाता है। 5. गुर्दे की कार्यप्रणाली में सुधार करता है। 6. इसके छिलकों को रगड़कर चेहरे पर लगाने से रंग निखरता है। 7. इसके छिलकों का नमक गुर्दे के दर्द की दवाओं में काम आता है। 8. खरबूजे के बीज का उपयोग मूत्रवर्धक दवा में किया जाता है। 9. खरबूजे के बीज  लीवर, किडनी और मूत्राशय की सूजन को ठीक करते हैं। 10. पीलिया और जलंधर में खुरबुजा बहुत  उपयोगी हैं। 11.खरबूजे का सेवन खाली पेट करना चाहिए नहीं तो पित्त ज्वर हो सकता है। 12. खरबूजे के बीज मिज़ाज को नरम करता हैं। 13. खरबूज के छिलके को आंखों पर लगाने से आंखों की लाली दूर होती है। 14.खरबूजा शरीर में मौजूद अतिरिक्त एसिडिटी को पेशाब और पसीने के जरिए बाहर निकाल देता है। 15. खट्टी डकारें, ज्यादा एसिडिटी के कारण मुंह में छाले, सीने में जलन होने पर खरबूजे का सेवन करना बहुत फायदेमंद होता है। 16. खरबूजे के नियमित सेवन से सामान्य शारीरिक कमजोरी दूर होती है। 17. खरबूजा पीलिया ब्लड प्रेशर में बहुत फायदेमंद होता है। 18. महिलाओं के मासिक धर्म चक्र और अनियमित पीरियड्स में खरबूजे का सेवन बहुत ही उपयोगी होता है।

Wednesday, November 9, 2022

जुलाब (रेचक) से उपचार Anima


जुलाब (रेचक) एनिमा 


  जुलाब की जरूरत क्या है ?

जुलाब के क्या लाभ हैं?

जो लोग अभी तक सफाई का अर्थ नहाना, धोना आदि बाहरी सफाई ही समझते हैं वे बड़े भ्रम में हैं। शरीर के ऊपर का मैल तो हमको दिखाई ही पड़ता है और इसलिए हमारा ध्यान बार-बार उसकी ओर जाता रहता है और हम उसे साफ कर ही डालते हैं। पर भीतरी गन्दगी आँखों से दिखाई नहीं देती उसे केवल अनुभव से या लक्षणों से जाना जाता है। इसलिए अनेक लोगों का ध्यान उस तरफ नहीं जाता। पर कुछ भी हो वह गन्दगी अधिक हानि पहुँचाने वाली होती है और धीरे-धीरे हमारे समस्त शरीर को मल से भर देती है। यही मल सब प्रकार के रोगों तथा अस्वस्थता का कारण होता है और जो लोग बीमारी और कमजोरी को दूर करना चाहते हैं उनका सबसे पहला कर्तव्य इस मल की सफाई कर डालना ही है। शरीर की इस अवस्था की तुलना हम उस नाली के साथ कर सकते हैं जो कीचड़ रुक जाने से सड़ रही हो और दुर्गन्ध फैला रही हो। बहुत से लोग ऐसी नाली में फिनाइल आदि डालकर उसकी बदबू को रोकने की कोशिश करते हैं पर यह उपाय टिकाऊ नहीं होता। दूसरे ही दिन फिर पहले से अधिक बदबू आने लगती है। तब अन्त में यही करना पड़ता है कि एक बार नाली में जमें हुए कीचड़ को पूरी तरह निकाल दिया जाय और फिर उसे साफ पानी से धो डाला जाये । ठीक इसी प्रकार छोटी और बड़ी आँतों में इकट्ठा होकर हमारे जो मल शरीर को अस्वस्थ बनाता है जब तक एक बार उसकी पूरी सफाई नहीं की जायेगी तब तक रोग की जड़ का सम्भव नहीं है।

1- रेचक के सेवन से आंतें मजबूत होती हैं।

2- जुलाब लेने से सेहत में आराम आता है।

3- पेट की आग यानी भूख भड़क उठती है।

4- बुढ़ापा जल्दी नहीं आता।

किस रोगी को जुलाब (रेचक) औषधि देनी चाहिए।

1- जिन्हें जहर दिया गया हो।
2- बुखार वालों को
3- कफ की अधिकता वालों के लिए
4- बवासीर
5- जिन्हें पेट में दर्द है और जिन्हें भूख नहीं लगती है।
6- पीलिया
7- गठिया वाले लोगों के लिए
8-  मर्दाना कमजोरी वाले लोगों के लिए।
9- हृदय रोग वालों के लिए।
10. खराब रक्त, सूजाक और उपदंश, और घातक रोग और कोढ़।
11- नाक और कान के रोग।
12- मुंह और दांतों के रोग
13- मानसिक रोग, मिर्गी।
14- उल्टी, हैजा, पेट फूलना।
15- नेत्र रोग
16- सूजन और बेचैनी वाले लोगों के लिए
17- दमा, खांसी
18- पागलपन, उन्माद और उदासी

यदि इन रोगों से पीड़ित है तो जुलाब दिया जा सकता है।

जुलाब किसे नहीं लेना चाहिए?

1- नाजुक स्वभाव वालों के लिए।
2- जिन्हें मलद्वार में घाव हो गया हो।
3- जिनकी कांच बाहर आती हो।
4- बिगड़े हुए रोगी।
5- भूख से बहुत  कमजोर और शरीर का तापमान कम हो।
6- नये बुखार मे
7- घाव के दर्द से पीड़ित
8- बहुत मोटा
9- बहुत कोमल, बच्चे, बूढ़े, प्यास से डरने वाले।
10- भूख से पीड़ित लोग
11-  संभोग ,अध्ययन और व्यायाम से थके हुए चिंतित  लोग।
12- गर्भवती महिलाओं को जुलाब नहीं देना चाहिए।

अगर देने की जरूरत है, तो एक बहुत ही हल्का रेचक दिया जाना चाहिए, जिससे केवल दो से तीन बार मल आ सकें अधिक नहीं।

जुलाब (रेचक) विधि

जिस दिन रेचक देना हो उस दिन की पहली रात को रोगी को नर्म सुपाच्य भोजन जैसे खिचड़ी और खट्टे फल और ऊपर से पानी पिलाना चाहिए।
दूसरे दिन जब आप देखें कि पेट फूल गया है, तो रोगी को पेट की ताकत के अनुसार रेचक औषधि दें।

रेचक लेने के बाद रोगी को क्या करना चाहिए?

जुलाब लेने वाले व्यक्ति को शौच करने की आवश्यकता होने पर रोकना नहीं चाहिए, उसे हवा से बचना चाहिए।
मेहनत करना बंद कर दें और संभोग से दूर रहें।

जुलाब से क्या निकलता है

जैसे उल्टी  मे राल, औषधि, कफ आदि क्रमानुसार बाहर आते हैं, वैसे ही  जुलाब में मल, पित्त औषधि और कफ क्रमशः बाहर निकलते हैं।  शुरू में मल गिरता है और कफ अंत में गिरता है। सख्त जुलाब में 20 बार दस्त आते हैं
सख्त रेचक में दो सौ तोला, मध्यम रेचक में एक सौ तोला और हल्के रेचक में साठ तोला मल बाहर आता है


  रेचक ठीक से लगाया गया हो तो खाँसी के साथ सारा गंदा कफ बाहर आ जाता है, इससे नाभि के चारों ओर हल्कापन और हृदय में आनंद के लक्षण दिखाई देते हैं।  ऐसा लगने लगता है कि स्वास्थ्य खुल गया है, पेट साफ होने लगता है।  शरीर में जलन, खुजली, मल और पेशाब में रुकावट आदि की शिकायत खत्म होती है।

यदि रेचक ठीक से न लगाया जाए तो नाभि के नीचे कठोर महसूस होता है,पसलियों में दर्द होता है, मल के माध्यम से हवा पूरी तरह से बाहर नहीं निकल पाती है, गड़गड़ाहट की आवाज होती है।  नीचे से निकलने वाली हवा में मल जैसी तेज गंध आती है।  शरीर पर खुजली होती है।  भारीपन, जलन, पेट फूलना, जी मिचलाना और उल्टी की शिकायत होती है।

Wednesday, May 11, 2022

मूत्राशय की कमजोरी; कारण और उपचार

 


 मूत्राशय की कमजोरी के कारण जो लोग बार-बार पेशाब आने या रात में बार-बार जागने पर पेशाब आने के कारण  अनिद्रा से पीड़ित हैं, वे मूत्राशय की कमजोरी से पीड़ित हैं।


मूत्राशय की कमजोरी के कई कारण होते हैं, जिसमें पेशाब आते समय  पर शौचालय नहीं जाना, ठंडे खाद्य पदार्थों का बार-बार उपयोग, निकोटीन और कैफीनयुक्त पेय जैसे चाय, कॉफी, सिगरेट,कोल्ड ड्रिंक्स का अत्यधिक सेवन, मूत्राशय की मांसपेशियों का कमजोर होना और पाचन संबंधी विकार के साथ-साथ पुरानी कब्ज भी इस बीमारी का कारण बन सकती है।  मूत्राशय की कमजोरी वाले लोगों को सबसे पहले चाय, कॉफी, सिगरेट, शीतल पेय और सफेद चीनी का सेवन जितना हो सके कम करना चाहिए।

ऐसा देखा गया है कि तेज पत्ती और तेज़ मीठी चाय के अधिक सेवन से भी मूत्राशय की कमजोरी हो जाती है।  तो ऊपर बताए गए मूत्राशय की कमजोरी के कारणों का पता लगाएं और उन्हें खत्म करने का प्रयास करें।  घरेलू उपाय के तौर पर आधा चम्मच चंदन का पाउडर, एक चम्मच सफेद जीरा और दो चम्मच बादाम की गिरी का पाउडर बना लें।  सुबह-शाम इसमें एक चम्मच पाउडर लेकर दही  में मिलाकर लस्सी बनाकर पिएं।  मौसम के अनुकूल अपने आहार को समायोजित करेेे ठंडे पानी  और ठंडे उत्पादों और सफेेद चीनी पूरी तरह        परहेज करें         


बादाम की गुठली 100 ग्राम, खाँड  100ग्राम, भुने चने 100ग्राम, काला तिल 100 ग्राम

सारी औषधियों का चूर्ण बनाकर असली घी में  भून कर रख लें।

खुराक रात को सोते समय एक चम्मच चाय का रोज़ाना सेवन करें 


Tuesday, February 22, 2022

काली जीरी के लाभ एवं उपयोग, गुण और काली जीरी के नुकसान

 

काली जीरी का प्रयोग अजवायन और मेथी के साथ वजन कम करने और पाचन क्रिया को सूधारने के लिए लोकप्रिय है। इसका उपयोग त्वचा रोगों के उपचार के लिए किया जाता है। यह खुजली को कम करने में मदद करती है। इसे रक्त शोधक ​​माना जाता है क्योंकि यह रक्त से विषाक्त पदार्थों को निकालता है। काली जीरी पेट  के कृमियों लिए एक उत्कृष्ट आयुर्वेदिक औषधि है। लेकिन संवेदनशील लोगों में इसके कड़वे स्वाद के कारण मतली आ सकती है।

काली जीरी बालों के लिए एक अच्छी दवा है। यह बालों को बढाती है और बालों की रूसी को दूर करती है। यह सुगर के रोगियो के लिए भी एक अच्छी दवा है। यह रक्त में ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित करने में भी मदद करती है। यह भोजोनोपरांत उच्चशर्करा (भोजन के बाद रक्त ग्लूकोज स्तर में वृद्धि) को कम करने के लिए भी लाभप्रद है।

काली ज़ीरी क्या है
काली जीरी भृङ्गराज कुल की आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है। आयुर्वेद में काली जीरी का दूसरा नाम अरण्यजीरक हैं।

अन्य भाषाओं में काली जीरी के नाम
संस्कृत (सु.) अरण्यजीरक, वनजीरक, सोमराजी
हिंदी (हि.) काली जीरी, सोहराई
बंगाली (बं.) सोमराज
मराठी (म.) कडुजिरें
गुजराती (गु.) काली जीरी, कड़वी जीरी
पंजाबी (पं.) काली जीरी
अरबी (अ.) कमूनबर्री
फारसी (फा.) जिरए बर्री (सोहराई)
तामिल (ता.) आदाबी जिलाकारा
तेगुलू (ते.) कटटू शिरागाम
अंग्रेज़ी (अं.) पर्पल फ्लीबेन (Purple Flebane)

उपयोगी अंग (Medicinal Parts)
काली जीरी के पौधे के बीज चिकित्सार्थ प्रयोग में लाये जाते हैं। काली जीरी के बीज का उपयोग आयुर्वेदिक और घरेलु औषधियों में किया जाता है। खाद्य विषाक्तता के कारण होने वाले दस्त के उपचार में कोमल पत्तियों का उपयोग किया जाता है।

आयुर्वेदिक गुण-धर्म एवं दोष कर्म


काली जीरी मुख्य रूप से कफ दोष पर क्रिया करती है और वात वृद्धि को भी कम करती है। इसके आयुर्वेदिक गुणों के अनुसार, पित्त वृद्धि वाली स्थितियों में इसका उपयोग नहीं करना चाहिए। इसलिए, यह कफ प्रबलता के लक्षण वाले लोगों के लिए सबसे उपयुक्त है। यह मोटापा और मोटापे से जुड़ी बीमारियों में भी अच्छी तरह से काम करता है। इसकी रक्त में चर्बी को कम करने की क्षमता भी होती है,  इसलिए यह रक्त में उच्च कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड के स्तर वाले लोगों के लिए भी लाभप्रद है।

औषधीय कर्म (Medicinal Actions)

काली जीरी कृमिनाशक के रूप में कार्य करता है। यह मुख्यरूप से रॉउंडवॉर्म (Roundworm) और टैपवार्म (Tapeworm) के विरुद्ध अधिक प्रभावी है। त्वचा में, इसके सूजन नाशक गुण अधिक देखे गए हैं जिसके कारण व्रण, खुजली और सोरायसिस सहित विभिन्न प्रकार के त्वचा रोगों के लिए यह एक अच्छा उपचारात्मक उपाय है। यह मुख्य रूप से खुजली और त्वचा की चिड़चिड़ाहट को कम करता है। यह त्वचा के फोड़ों का उपचार में लाभदायक है और ल्यूकोडरर्मा (श्वित्र) के उपचार में सहायक है। यह बहुमूत्ररोग को भी नियंत्रित करने में मदद करता है।

काली जीरी (Kali Jeeri) में निम्नलिखित औषधीय गुण है:

स्तन दूध की समस्याएं – जब स्तन का दूध ताजा प्रतीत नहीं होता है, खराब गंध आती है और बच्चे को पचाने में परेशानी होती है, काली जीरी स्तन दूध की गुणवत्ता को बढ़ाता है और इन सभी लक्षणों को कम करता है।
जीर्ण ज्वर, आंतरिक फोड़ा ,आंतों में दर्द, सर्प दंश

निम्नलिखित स्थितियों में त्वचा पर बाहरी रूप से काली जीरी चूर्ण का पेस्ट लगाया जाता है: –
मस्से, फोड़े, मुंहासे या मुँहासा ,जुओं को मारने के लिए सिर पर लगाया जाता है
ल्यूकोडर्मा (श्वित्र) (4 भाग काली जीरी + 1 भाग हरताल)
त्वचा की सूजन
काली जीरी के लाभ, फायदे एवं प्रयोग
काली जीरी का प्रभाव लसीका, रक्त, वसा, त्वचा, आंत और गुर्दे पर दिखाई देता है। इसमें जीवाणुरोधी, रोगाणुरोधी और कृमिनाशक क्रियाऐं होती हैं। यह अनेकों रोगों से छुटकारा पाने में मदद करती हैं।

कृमि संक्रमण
काली जीरी मानव में आंतों के कीड़ों और परजीवी संक्रमण के विरुद्ध प्रभावी है। यह इन कीड़े प्रजातियों के खिलाफ शक्तिशाली औषधि है। मुख्यतः यह अपने शक्तिशाली कृमिनाशक गुणों के कारण गंडूपद (Round Worm) और तंतु कृमियों (Thread Worm) के खिलाफ अच्छे परिणाम देता है। आयुर्वेद में, इसका उपयोग गुड़ और वायविडंग के साथ निम्नलिखित तरीके से किया जाता है।

काली जीरी 500 मिली ग्राम
वायविडंग 1000 मिली ग्राम
गुड़ 3 ग्राम
इस मिश्रण को बताई गयी खुराक के अनुसार दिन में दो बार, भोजन के 2 घंटे बाद गर्म पानी के साथ देना चाहिए।
अफारा, आँतों की सूजन और वायु
आँतों में वायु होने पर कुटकी के साथ काली जीरी का प्रयोग बहुत प्रभावशील सिद्ध हुआ है। इन दोनों जड़ी बूटियों में शक्तिशाली वायुनाशक और कफहर गुण होते है। यह योग पेट के अफारे को नष्ट करने के लिए उत्तम कार्यशील सिद्ध हुआ है।

इसके अतिरिक्त, इसमें पित्ताशय अर्थात gallbladder को संकुचित कर पित्त के बहाव को बढ़ाने वाले गुण भी होते हैं। जिसके कारण यह पित्ताशय के स्वास्थ्य में सुधार करती है और पित्त स्राव की मात्रा आंत्र में बढा देती है।



पित्त आंत्र में जाकर आंत्र की पेशियों की क्रमाकुंचन क्रिया अर्थात peristalsis को बड़ा देता है और जिससे कब्ज का भी उपचार हो जाता है। इसके अलावा यह कटु पौष्टिक होने के कारण आंत्र बल भी देता हैं। यह यकृत के कार्यों में भी सुधार करता है।

इस योग का एक सप्ताह तक प्रयोग करने से कब्ज, अफारा, गैस और पेट का भारीपन दूर होता है।

सर्वोत्तम परिणामों के लिए, 500 मिलीग्राम कालीजीरी में 500 मिलीग्राम कुटकी और 50 मिलीग्राम काली मिर्च मिलाकर उपयोग करना चाहिए। यह भोजन के बाद उषण जल के साथ दिन में दो बार लिया जा सकता है।

यदि रोगी को पेट में गैस हो अर्थात हवा जमा होने लगती हो, या फिर पेट में भारीपन और अफारा हो, यह योग उनके लिए भी अति लाभदायक सिद्ध हुआ है।


वजन घटाने के लिए काली जीरी

लोगों के बीच वजन घटाने के लिए काली जीरी अधिक प्रसिद्ध है। आमतौर पर प्रयुक्त सूत्र (formula) काली जीरी, अजवायन और मेथी का है: –

काली जीरी चूर्ण 1 भाग
अजवायन चूर्ण 2 भाग
मेथी चूर्ण 4 भाग
चूर्ण बनाकर इसमें इस बीजों के पाउडर को उपरोक्त अनुपात में मिश्रित करना चाहिए।
खुराक: काली जीरी, अजवायन और मेथी के फॉर्मूले को प्रतिदिन 3.5 ग्राम की मात्रा में भोजन के 1 से 2 घंटे बाद गर्म पानी के साथ लिया जा सकता है।
वसा को कम करने के लिए, प्रतिदिन दो बार, एक ग्राम आरोग्यवर्धिनी वटी या कुटकी चूर्ण का उपयोग किया जा सकता है।

खाज-खुजली

किसी भी अंतर्निहित कारण से होने वाली तेज खुजली या प्रखर खाज (कंडू) के उपचार के लिए काली जीरी के साथ हल्दी, अजवायन, कुटकी और काली मिर्च का उपयोग किया जाता है। इसे निम्नलिखित अनुपात में मिश्रित किया जाना चाहिए:

काली मिर्च 125 मिली ग्राम
काली जीरी 500 मिली ग्राम
कुटकी 500 मिली ग्राम
हल्दी 1000 मिली ग्राम
अजवायन 2000 मिली ग्राम
गुड़ 2000 मिली ग्राम
इस मिश्रण को प्रतिदिन दो बार, भोजन करने के बाद पानी के साथ लेना चाहिए।
इस मिश्रण के परिणाम CETIRIZINE के साथ तुलनीय हैं, लेकिन यह खुजली से लंबे समय तक स्थायी राहत प्रदान करता है।
एक्जिमा
जब शोषग्रस्‍त त्वचा प्रदाह में प्रभावित त्वचा से पानी के समान द्रव्य रिसता हो तो काली जीरी अत्यधिक प्रभावी है। इसका उपयोग मौखिक के साथ साथ बाहरी रूप से भी किया जाता है।

मौखिक रूप से, इसे प्रति दिन 500 मिलीग्राम की खुराक में लिया जाता है और बाहरी रूप से, इसका मलहम प्रभावित त्वचा पर लगाया जाता है। इसके अतिरिक्त, यह रोगाणुओं को मारता है और सूजन को कम करता है। यह त्वचा के घावों के भरने में तेजी लाता है। कुछ आयुर्वेदिक चिकित्सक घावों को तेजी से भरने के लिए काली जीरी चूर्ण को नीम के तेल या निम्बादि तैलम में मिलाने की सलाह देते हैं।

श्वित्र या सफेद दाग
ल्यूकोडर्मा (श्वित्र या सफेद दाग) में, निम्नलिखित मिश्रण के अनुसार काली जीरी को प्रभावित त्वचा पर लगाया जाता है: –

काली जीरी 50 ग्राम
हरीतकी 50 ग्राम
बिभीतकी 50 ग्राम
अमलाकी 50 ग्राम
हरताल भस्म 20 ग्राम
गौ मूत्र आवश्यकतानुसार (पेस्ट बनाने के लिए)
काली जीरी का मिश्रण उपरोक्त अनुपात के अनुसार तैयार किया जाता है। इसे 1 से 3 महीने के लिए प्रतिदिन दो बार लगाया जाता है।
अतिरिक्त लाभ के लिए, खाने के लिए बाबची (बाकुची) तेल की 5 से 10 बूंदों का उपयोग दूध और निम्नलिखित मिश्रण के साथ आंतरिक रूप से किया जाता है।

काली जीरी 1 भाग
वायविडंग 1 भाग
काले तिल 1 भाग
इन तीनों घटकों को समान मात्रा में मिलाया जाता है और प्रतिदिन दो बार 1.5 ग्राम की मात्रा में लिया जाता है।
मधुमेह
काली जीरी का अध्ययन मधुमेह विरोधी क्षमता के लिए किया गया है। काली जीरी अग्न्याशय से इंसुलिन स्राव बढ़ाती है। अध्ययन के अनुसार, यह टाइप 2 मधुमेह में से हाइपरग्लेसेमिया  (Hyperglycemia) को कम कर देता है। जब रक्त ग्लूकोज का स्तर 180 मिलीग्राम / डीएल से कम होता है तो यह अच्छी तरह से काम करता है। यदि, खाली पेट रक्त शर्करा का स्तर 180 मिलीग्राम / डीएल से अधिक है, तो रोगी को अन्य दवाओं की आवश्यकता भी होती है।

घरेलु चिकित्सा में, बहुमूत्र रोग (उदक मेह) के उपचार में काली जीरी का उपयोग मेथी के साथ किया जाता है।

मात्रा एवं सेवन विधि (Dosage)
काली जीरी की सामान्य खुराक इस प्रकार है।
शिशु और बच्चे वजन 10 मिलीग्राम प्रति किलो (लेकिन कुल खुराक प्रति दिन 1 ग्राम से अधिक नहीं होनी चाहिए)
व्यस्क प्रतिदिन दो बार 500 मिली ग्राम से 2 ग्राम
स्तनपान प्रतिदिन दो बार 250 मिली ग्राम से 500 मिली ग्राम
अधिकतम संभावित खुराक 4 ग्राम प्रतिदिन (विभाजित मात्रा में)
*दिन में दो बार ताजे या गर्म पानी के साथ
उपयोग करने का उपयुक्त समय: भोजन के बाद
काली जीरी के नुकसान
काली जीरी अविषाक्त परन्तु वमनकारी जड़ी बूटी है, जिसके परिणामस्वरूप कुछ संवेदनशील लोगों में मतली या उल्टी हो सकती है। अन्यथा, अधिकांश वयस्कों में यह अच्छी तरह से सहनीय है। इसके निम्नलिखित दुष्प्रभाव होते है: –

मतली (सामान्य)
उल्टी (सामान्य)
दस्त (असामान्य)
चक्कर आना (असामान्य)
पेट में ऐंठन (दुर्लभ, लेकिन प्रतिदिन दो बार 3 ग्राम से अधिक खुराक लेने पर होता है)


वयस्कों में, यदि खुराक प्रति दिन 1 ग्राम (विभाजित मात्रा में लेने पर) से कम होती है, तो इसका कोई नुकसान नहीं होता है, लेकिन जब इसकी खुराक बढ़ जाती है, तो इसकी वमनकारी क्रिया भी बढ़ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप मतली और उल्टी हो जाती है।

काली जीरी से एलर्जी प्रतिक्रिया
काली जीरी की एलर्जी प्रतिक्रियाएं बहुत दुर्लभ हैं, लेकिन यदि किसी को इसका उपयोग करने के बाद निम्नलिखित लक्षण होते हैं, तो उस व्यक्ति काली जीरी से एलर्जी हो सकती है और इसे तुरंत रोकने की आवश्यकता है।

त्वचा पर चकत्ते
जीभ पर सूजन
पेट में दर्द
होंठ के चारों ओर लाली
मुंह में झुनझुनी
आँखों में पानी आना
गर्भावस्था और स्तनपान
गर्भावस्था: काली जीरी में मध्यम प्रकार के रेचक गुण होते हैं, इसलिए इससे दस्त हो सकते हैं और यह गर्भाशय संकुचन को प्रेरित कर सकता है। इसलिए, गर्भावस्था में इसके उपयोग से बचना चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार, इसमें कटु रस और ऊष्ण वीर्य होता है, जो गर्भावस्था में उपयुक्त नहीं है।

स्तनपान: स्तनपान कराते समय काली जीरी का उपयोग संभवतः सुरक्षित है और दूध की गुणवत्ता में सुधार के लिए इसके उपयोग की सलाह दी जाती है। इस की खुराक प्रतिदिन दो बार 250 मिलीग्राम से 500 मिलीग्राम होनी चाहिए।

Thursday, February 7, 2019

गर्भाशय की सूजन Uterus Swelling


अक्सर लोगों को पेट में दर्द की समस्या होती है। कई बार ये दर्द लाइफस्टाइल में हुए बदलाव, मौसम में बदलाव और गलत-खान-पान के चलते होता है। लेकिन कई बार इस दर्द के पीछे गंभीर रोग भी होता है। लेकिन जानकारी के अभाव में हम उसे समझ नहीं पाते हैं। महिलाओं में कई बार पेट में दर्द बच्चेदानी में सूजन (Uterus Swelling) के कारण भी होता है। जब भी मौसम में बदलाव आता है तो गर्भाशय में सूजन आ जाती है। ऐसे में महिलाओं को असहनीय पेट दर्द, बुखार, सिरदर्द और कमर दर्द का सामना करना पड़ता है। समय रहते इस समसया का इलाज न करने पर यह कैंसर जैसी बड़ी बीमारी का कारण भी बन सकती है। जिसे गर्भाशय फाइब्रॉएड कहते हैं। आज हम आपको गर्भाश्य की सूजन को कम करने के लिए कुछ नुस्खे बता रहे हैं।
गर्भाशय में सूजन के कारण
बदलते मौसम के कारण
अधिक औषधियों के सेवन पर
ज्यादा व्यायाम करने से
भूख से ज्यादा खाना खाने पर
तंग कपड़े पहनना
प्रसव के दौरान सावधानी न बरतना
अधिक यौन संबंध के कारण

लक्षण:
गर्भाशय की सूजन होने पर महिला को पेडू में दर्द और जलन होना सामान्य लक्षण हैं, किसी-किसी को दस्त भी लग सकते हैं तो किसी को दस्त की हाजत जैसी प्रतीत होती है किन्तु दस्त नहीं होता है। किसी को बार-बार मूत्र त्यागने की इच्छा होती है। किसी को बुखार और बुखार के साथ खांसी भी हो जाती है। यदि इस रोग की उत्पन्न होने का कारण शीत लगना हो तो इससे बुखार की तीव्रता बढ़ जाती है।

गर्भाशय की सूजन में विभिन्न औषधियों से चिकित्सा:

1. नीम: नीम, सम्भालू के पत्ते और सोंठ सभी का काढ़ा बनाकर योनि मार्ग (जननांग) में लगाने से गर्भाशय की सूजन नष्ट हो जाती है।

2. पानी: गर्भाशय की सूजन होने पर पेडू़ (नाभि) पर गर्म पानी की बोतल को रखने से लाभ मिलता है।

3. हल्दी: शुद्ध हल्दी, भुना हुआ सुहागा सभी को मकोय के ताजे रस में मिलाकर रूई के फाये को योनि में रखने से गर्भाशय की सूजन समाप्त हो जाती है।

4. एरण्ड: एरण्ड के पत्तों का रस छानकर रूई भिगोकर गर्भाशय के मुंह पर 3-4 दिनों तक रखने से गर्भाशय की सूजन मिट जाती है।

5. बादाम: बादाम रोगन एक चम्मच, शर्बत बनफ्सा 3 चम्मच और खाण्ड पानी में मिलाकर सुबह के समय पीएं तथा बादाम रोगन का एक फोया गर्भाशय के मुंह पर रखें इससे गर्मी के कारण उत्पन्न गर्भाशय की सूजन ठीक हो जाती है।

6. चिरायता: चिरायते के काढ़े से योनि को धोएं और चिरायता को पानी में पीसकर पेडू़ और योनि पर इसका लेप करें इससे सर्दी की वजह से होने वाली गर्भाशय की सूजन नष्ट हो जाती है।

7. बाबूना: बाबूना, गुलकन्द और अफतिमून को 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर 300 ग्राम पानी में उबालें जब यह एक चौथाई रह जाए तो इसे छानकर पी लें। बाबूना को पानी में पीसकर एरण्ड के तेल में मिलाकर पेडू़ और योनि पर लेप करें। इससे गर्भाशय की सूजन ठीक हो जाती है।

8. रेवन्दचीनी: रेवन्दचीनी को 15 ग्राम की मात्रा में पीसकर आधा-आधा ग्राम पानी से दिन में तीन बार लेना चाहिए। इससे गर्भाशय की सूजन मिट जाती है।

9. बजूरी शर्बत या दीनार: बजूरी या दीनार को दो चम्मच की मात्रा में एक कप पानी में सोते समय सेवन करना चाहिए। इससे गर्भाशय की सूजन मिट जाती है।

10. कासनी: कासनी की जड़, गुलबनफ्सा और वरियादी 6-6 ग्राम की मात्रा में, गावजवां और तुख्म कसुम 5-5 ग्राम, तथा मुनक्का 6 या 7 को एक साथ बारीक पीसकर उन्हें 250 ग्राम पानी के साथ सुबह-शाम को छानकर पिला देते हैं। यह उपयोग नियमित रूप से आठ-दस दिनों तक करना चाहिए। इससे गर्भाशय की सूजन, रक्तस्राव, श्लैष्मिक स्राव (बलगम, पीव) आदि में पर्याप्त लाभ मिलता है।

11. अशोक: अशोक की छाल 120 ग्राम, वरजटा, काली सारिवा, लाल चन्दन, दारूहल्दी, मंजीठ प्रत्येक को 100-100 ग्राम मात्रा, छोटी इलायची के दाने और चन्द्रपुटी प्रवाल भस्म 50-50 ग्राम, सहस्त्रपुटी अभ्रक भस्म 40 ग्राम, वंग भस्म और लौह भस्म 30-30 ग्राम तथा मकरध्वज गंधक जारित 10 ग्राम की मात्रा में लेकर सभी औषधियों को कूटछानकर चूर्ण तैयार कर लेते हैं। फिर इसमें क्रमश: खिरेंटी, सेमल की छाल तथा गूलर की छाल के काढ़े में 3-3 दिन खरल करके 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लेते हैं। इसे एक या दो गोली की मात्रा में मिश्रीयुक्त गाय के दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करना चाहिए। इसे लगभग एक महीने तक सेवन कराने से स्त्रियों के अनेक रोगों में लाभ मिलता है। इससे गर्भाशय की सूजन, जलन, रक्तप्रदर, माहवारी के विभिन्न विकार या प्रसव के बाद होने वाली दुर्बलता इससे नष्ट हो जाती है। 

Tuesday, January 8, 2019

हिजामा हर व्यक्ति को लगावाना चाहिए

hijama guru
फास्ट फूड और मिलावटी चीजों के बढ़ते इस्तेमाल शरीर में बढ़ते विषैले तत्वों को निकालने के लिए हिजामा एक कारगर चिकित्सा है इस  चिकित्सा में शरीर में मौजूद विषैले तत्वों को प्लास्टिक से निर्मित कप द्वारा शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है यह पैथी  सिंघी, श्रृंगी या जोंक चिकित्सा का ही  एक आधुनिक रूप है जैसे इन चिकित्सा में शरीर का गंदा खून बाहर निकाल लिया जाता था जिससे मनुष्य स्वस्थ हो जाता था यह चिकित्सा पूरे विश्व मे प्राचीन काल से होती आ रही है इसी चिकित्सा को हिजामा कपिंग थेरेपी के नाम से जानते हैं
इसी चिकित्सा को जब हमारे देवबंद के लहसवाड़ा स्थित इमदादी शिफा खाना हिजामा सेंटर पर सपा नेता हकीम अब्दुल वाहिद कुरेशी ने कराया उन्होंने अपने कुछ अनुभव पेश किए जिसे हम अपने पाठकों के लिए यहां प्रस्तुत कर रहे हैं
सपा नेता हकीम अब्दुल वाहिद कुरेशी ने बताया की नंबर एक तो यह हमारे नबी मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत है उन्होंने बताया कि मैं अपने घुटनों को लेकर कई साल से परेशान था जिन पर मैं काफी दवाई वगैरा लगा चुका था कुछ समय के लिए आराम मिल जाता था पर पूरा खत्म नहीं हो पा रहा था यह मेरे घुटनों  तकरीबन चार पांच साल पहले चारपाई में घिस  गए थे जो आज तक परेशानी की वजह बने हुए थे इन पर कुछ खाज  रहती थी और जख्म से हो जाते थे मैंने इन पर एक बार ही हिजामा करवाया और एक बार ही में मुझे बहुत ज्यादा आराम हुआ हिजामा में हुए दर्द के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा इसमें कोई भी दर्द मुझे नहीं हुआ हिजामा की मशीन देखकर पहले तो मैं यह समझा था पता नहीं मेरे साथ अब क्या होने वाला है पर जब मुझे उस मशीन से कप लगाए गए तो मुझे इसका कोई पता ही नहीं चला और ना दर्द महसूस हुआ उन्होंने बताया कि यह एक बेहतरीन चिकित्सा है जिसे सभी को कराना चाहिएयह
इटरव्यू आप इस लिंक पर भी देख सकते हैं

Thursday, February 16, 2017

बालों में खुश्की के कारण : बचाव व् इलाज





बालों की देखभाल न करने से कई तरह की परेशानियां खड़ी हो जाती है। इनमें से एक है डैंड्रफ यानी रूसी, जो खुश्की और बालों में रूखेपन की वजह से होती है लेकिन बालों की थोड़ी सी देखभाल से आप न सिर्फ बालों की समस्याओं का समाधान कर सकते हैं साथ ही डेंड्रफ से भी छुटकारा पा सकते हैं। रूसी में आयुर्वेद से इलाज बहुत अच्छा रहता है। आइए जानें आयुर्वेद के अनुसार रूसी दूर करने के लिए क्या करना  पड़ता है

बालों में खुश्की के कारण

तनाव का अधिक होना
फंगल इन्फेक्शन का होना


बालों में अधिक पसीने के कारण
बालों को आवश्यक पोषक तत्वों का ना मिलना
बालों की सफाई (हेयर केयर) का ध्यान न रखने से।
हारमोंस इम्बेलेंस के कारण भी ये समस्या हो सकती है।



बालों से रूसी का कैसे करें सफाया?


नारियल के तेल में निम्बू का रस पकाकर रोजाना सर की मालिश करें
पानी में भीगी मूंग को पीसकर नहाते समय शेम्पू की जगह प्रयोग करें
मूंग पावडर में दही मिक्स करके सर पर एक घंटा लगाकर धो दें
रीठा पानी में मसलकर उससे सर धोएं
 मांसाहार कम करे पूर्ण शाकाहारी भोजन का प्रयोग भी आपकी सर की रूसी दूर करने में सहायक होगा


रूसी दूर करने के देसी और आयुर्वेदिक नुस्खे

मुल्तानी मिटटी के प्रयोग से भी रूसी और खुश्की को खत्म कर सकते है। मुल्तानी मिट्टी को पानी में अच्छे से पीसकर लेप बना ले फिर इसमें थोड़ी मात्रा में निम्बू के रस को भी मिला दे फिर इसके बाद इस लेप को पन्द्रह से बीस मिनट तक बालों पर लगाने के बाद सिर को धोये। इस उपाय को दो से तीन बार प्रयोग करने से रूसी की समस्या के साथ साथ सिर में खुश्की की परेशानी से भी छुटकारा मिलता है।
एलोवेरा जेल से बालों में अच्छे तरीके से मसाज करने से भी बालों की बहुत सी परेशानियों से राहत मिलती है।
सरसों के तेल से रात को सोते वक्त अच्छे से मालिश करे और फिर सुबह बालों को अच्छे से धो ले।

इन नुस्खों को अगर सही तरीके से अपनाये तो आप बालो में डैंड्रफ, बाल गिरने और टूटने की समस्या से छुटकारा पा सकते है और यदि इन उपायों के बाद भी आपको कुछ आराम नहीं मिला तो आपको किसी बालों के विशेषज्ञ डॉक्टर या आयुर्वेदिक वैद से सलाह करनी चाहिए।

पानी का अधिक सेवन करे।
बालों पर ज्यादा तरह के ब्यूटी प्रोडक्ट्स का प्रयोग करने से बचे।
बालो में से रूसी दूर करने के उपाय करने हो या फिर खुश्की और रुसी से बचना हो आपको अगर शैम्पू का प्रयोग करना है तो केवल आयुर्वेदिक/हर्बल या नेचुरल शैम्पू का ही प्रयोग करे ।
बालों की समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए बालों पर विशेष ध्यान देने की जरुरत होती है। ऐसा करने से बाल स्वस्थ तो रहेंगे ही साथ साथ सुन्दरऔर मजबूत बनेंगे। इसलिए हमे ऐसा भोजन खाना चाहिए जो बालों में पोषक तत्वों की पूर्ति कर दे।
अधिक तनाव के कारण भी रूसी, बालों का झड़ना, बाल सफ़ेद होना और गंजापन जैसी परेशानी हो जाती है इसलिए हमें तनाव को कम करने के उपायों पर काम करना चाहिए।



Sunday, April 19, 2015

ग्रीन टी पीजिए और बीमारी दूर भगाइए


हरी चाय(green tea) के फायदा
दांतों की रक्षा में सहायक: ग्रीन टी मसूड़ों में मौजूद नुक्सानदायक बैक्टीरिया को नष्ट कर दांतों की रक्षा करती है। इसमें मौजूद फ्लोरीन दांतों में खोड़ों (कैविटीज) के बनने को रोकता है।

गठिया से बचाव : जो लोग चार या पांच कप ग्रीन टी का सेवन करते हैं वे रूमेटाइड आर्थराइटिस पर नियंत्रण कर सकते हैं।
रोग प्रतिरोधक( immunity) क्षमता बढ़ाने में मदद: कुछ लोगों में स्टैमिना की कमी होती है, ग्रीन टी में मौजूद गुराना उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होता है।
गुर्दे के इंफेक्शन  से सुरक्षा ग्रीन नियमित सेवन से गुर्दों के संक्रमण की संभावना कम होती है।

मस्तिष्क बीमारियों से लडने में सहायता ग्रीन टी में विभिन्न किस्म के पोषक तत्व पाए जाते हैं जो मल्टीपल स्कलीरोसिस जैसी दिमागी बीमारियों से लडने में सहायक होते हैं। ये दिमाग की कार्यप्रणाली को भी बढ़ाते हैं।
पाचन और भूख में : ग्रीन टी के सेवन से पाचन क्रिया बेहतर और तेज गति से काम करती है और यह भूख भी बढ़ाती है।

कैंसर से रक्षा में : माना जाता है कि ग्रीन टी में कुछ ऐसे पोषक तत्व होते हैं जो कैंसर कोशिकाओं को शरीर में प्रवेश करने से रोकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जो लोग कैंसर से जूझ रहे हैं वे ग्रीन टी के लगातार सेवन से इस बीमारी को रोकने में सक्षम हो सकते हैं। ग्रीन टी में एपीगैलोकैटेचिन गैलेट नामक एक एंटी-आक्सीडैंट होता है जो कैंसर पैदा करने वाली कोशिकाओं के विकास को रोकता है।

दिल की रक्षा में : ग्रीन टी एल.डी.एल. कोलैस्ट्राल की आक्सीडेशन को रोकती है। इस प्रकार धमनियों में प्लाक में कम होने से हृदय रोगों का खतरा कम होता है। यह सब एपीगैलोकैटेचिन गैलेट के कारण होता है।
त्वचा की रक्षा में : गर्म पानी में मिलाए गए ग्रीन टी के सत्व त्वचा पर बाहरी तौर पर लगाने से रेडिएशन के प्रभाव कम होते हैं। रेडिएशन से प्रभावी रक्षा के लिए उसे प्रतिदिन तीन बार लगाना चाहिए।

 मोटापा : ग्रीन टी की सहायता से हम शरीर में कैलोरीज के बर्न होने की प्रयिा को तेज कर सकते हैं। शरीर में पोलीफिनोल्स की जितनी अधिक मात्रा होगी उतने फैट बनग इफैक्ट्स होंगे। ग्रीन टी पोलीफिनोल्स का एक भरपूर स्रोत है इसीलिए इसे वजन कम करने वाले विकल्पों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। यह मोटापे की सबसे बढिया औषधि है। इसलिए इसे डेली डाइट में शामिल करके न सिर्फ फैट कम होती है बल्कि साथ ही यह आपके शरीर को साफ करके विभिन्न रोगों से आपकी रक्षा करती है।

टाइप 1 डाइबिटीज़ में ग्रीन टी के लाभ


टाइप 1 डाइबिटीज़ के रोगियों के लिए ग्रीन टी बहुत फायदेमंद होती है क्‍योंकि ग्रीन टी में एंटीआक्सिडेंट्स भरपूर मात्रा में पाये जाते हैं।
ब्‍लड शुगर को नियंत्रित करना

ग्रीन टी शरीर में ग्‍लूकोज की मात्रा को नियंत्रित करती है,और इन्‍सुलिन दवा के हानिकारक प्रभावो को कम करने में भी मदद करती है । यूनिवर्सिटी ऑफ मेरिलैंड मेडिकल सेंटर के अनुसार ग्रीन टी शरीर में ना सिर्फ टाइप 1 डाइबिटीज़ को कम करता है बल्कि इसके बुरे प्रभाव को भी कम करता है।

हाइपरटेंशन को कम करना

2004 में चीन में किए गए एक शोध के अनुसार एक दिन में एक कप ग्रीन टी पीने से 50 प्रतिशत तक हाई ब्‍लड प्रेशर में कमी आती हैं,ग्रीन टी खून की धमनियों को आराम पहुंचाता है,जिससे हाइ ब्‍लड प्रेशर की समस्‍या में आराम मिलता हैं।

कालेस्‍ट्राल को कम करना
जो लोग रोज ग्रीन टी का सेवन करते है उनमें कालेस्‍ट्राल की मात्रा कम होती है उन लोगों के मुकाबले जो ग्रीन टी नहीं लेते इसलिए क्‍योंकि उनका मानना है कि उसमें मौजूद पॉलिफेनल से कालेस्‍ट्राल बढ़ता है।.

ग्रीन टी लेने के तरिके
रोज कम से कम आधा कप ग्रीन टी पीने से टाइप 1 डाइबिटीज़ की बीमारी से आराम मिलता हैं,एक साल तक नियमित इसका सेवन करने से ज्‍यादा से ज्‍यादा शारीरिक लाभ मिलेगा, ग्रीन टी ना पीने वालों को हाइपरटेंशन के खतरों ज्‍यादा की आशंका रहती है, रोज ग्रीन टी पीने से डाइबिटीज़ एवं हाइपरटेंशन में आराम मिलता है।

ग्रीन टी में होते हैं एक्‍टिव एजेन्‍ट
ग्रीन टी में मौजूद एक्‍टिव एजेन्‍ट जैसे केटेचीन,इजीसीजी,इन्‍सुलिन की मात्रा को बढ़ाने में मदद करती है,साथ ही यह एन्‍टी-ओक्‍सेट के रूप में भी कार्य करता है।

चेतावनी
ग्रीन टी में कैफेन की मात्रा कॉफी के मुकाबले ज्‍यादा होती है,ज्‍यादा ग्रीन टी पीने से यह इससे मिलने वाले लाभ को कम करता है,जैसे- हाइपरटेशन इत्‍यादि, कई बार डाइबिटीज़ के प्रभावों को बढ़ाता है। कोशिश करें कि टी की सही मात्रा लें ताकि आपको इसका लाभ मिल सके और आप ओवरियन कैंसर, हेपेटाइटिस एवं अन्‍य शारीरिक समस्‍याओं के खतरों से बच सके।


ग्रीन टी स्‍वास्‍थ्‍य के लिए बहुत लाभदायक है। ग्रीन टी पीने से न केवल सामान्‍य बीमारियां दूर रहती हैं बल्कि कैंसर और अल्‍जाइमर के मरीजों के लिए यह फायदेमंद है।



ग्रीन टी के गुण

प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत
ग्रीन टी में विटामिन सी, पालीफिनोल्स के अलावा अन्य एंटीआक्सीडेंट मौजूद होते हैं जो कि शरीर के फ्री रेडीकल्स को नष्ट कर इम्‍यून सिस्‍टम को मजबूत बनाते हैं। दिन में तीन से चार कप ग्रीन टी शरीर में लगभग 300-400 मिग्रा पालीफिनोल पहुंचाती है, इससे शरीर में बीमारियां होने का खतरा कम होता है और शरीर रोग-मुक्‍त होता है।

कैंसर से रखे दूर
ग्रीन टी कैंसर के सेल को बढ़ने से रोकती है। ग्रीन टी मुंह के कैंसर के लिए बहुत ही फायदेमंद है। इसके नियमित प्रयोग से पाचन नली और मूत्राशय के कैंसर की आशंका न के बराबर रहती है। इसलिए कैंसर के मरीजों के लिए ग्रीन टी रामबाण है।

दिल के लिए
ग्रीन टी पीने से मेटाबॉलिज्‍म का स्‍तर बढ़ता है। जिसके कारण शरीर में कोलेस्ट्राल की मात्रा संतुलित रहती है। कोलेस्‍ट्रॉल की मात्रा संतुलित रहने से रक्त चाप सामान्य रहता है। ग्रीन टी खून को पतला बनाए रखती है जिससे खून का थक्का नहीं बन पाता। ग्रीन टी पीने से हार्ट अटैक आशंका बहुत कम रहती है।

वजन घटाए
मोटापा कम करने में ग्रीन टी बहुत मदद करती है। खाने के बाद एक कप ग्रीन टी पीने से पाचन की गति बढ़ जाती है। ग्रीन टी में मौजूद कैफीन से कैलोरी खर्च करने की गति भी बढ़ जाती है। इसके कारण वजन कम होता है।

मुंह के लिए
ग्रीन टी मुंह के लिए बहुत फायदेमंद है। ग्रीन टी में ऑक्‍सीकरण रोधी पॉलीफिनॉल पाया जाता है जो मुंह में उन तत्‍वों को खत्‍म कर देता है जो सांस संबंधी परेशानियों के लिए जिम्‍मेदार होते हैं।

ग्रीन टी पर हर रोज नए-नए शोध हो रहे हैं। ग्रीन टी कई रोगों के इलाज में रामबाण साबित हुई है। ग्रीन टी अल्‍जाइमर, पार्किंसन, मल्‍टीपल स्‍कलेरोज, कैंसर, मोटापा और हृदय संबंधी रोगों के लिए फायदेमंद है।

Tuesday, March 17, 2015

शुक्राणुहीनता NIL SPERM

शुक्राणु की कमी के कारण और निवारण
आदमी दिखनें में तन्दरुस्त हो ताकतवर हो लेकिन उसके शुक्राणु अगर दुर्बल हैं तो वो गर्भ धारण नहीं करवा सकते - तो जानें वीर्य में स्वस्थ शुक्राणुओं को बढ़ाने के चंद तरीके - पुरुष के वीर्य में शुक्राणु होते हैं ये शुक्राणु स्त्री के डिम्बाणु को निषेचित कर गर्भ धारण के लिये जिम्मेदार होते हैं - वीर्य में इन शुक्राणुओं की तादाद कम होने को शुक्राणु अल्पता की स्थिति कहा जाता है। शुक्राणु की कमी को ओलिगोस्पर्मिया कहते हैं लेकिन अगर वीर्य में शुक्राणुओं की मौजूदगी ही नहीं है तो इसे एज़ूस्पर्मिया संज्ञा दी जाती है ऐसे पुरुष संतान पैदा करने योग्य नहीं होते हैं।

 
 

 वीर्य में स्वस्थ शुक्राणुओं की तादाद कम होने के निम्न कारण हो सकते हैं-- * वीर्य का दूषित होना * अंडकोष पर गरमी के कारण वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या कम हो जाती है। ज्यादा तंग अन्डर वियर पहिनने,गरम पानी से स्नान करने, बहुत देर तक गरम पानी के टब में बैठने और मोटापा होने से शुक्राणु अल्पता हो जाती है। * हस्तमैथुन से बार बार वीर्य स्खलित करना * थौडी अवधि में कई बार स्त्री समागम करना * अधिक शारीरिक और मानसिक परिश्रम करना * ज्यादा शराब सेवन करना * अधिक बीडी सिगरेट पीना * गुप्तांग की दोषपूर्ण बनावट होना * शरीर में ज़िन्क तत्व की कमी होना * प्रोस्टेट ग्रंथि के विकार * वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या बढाने के लिये निम्न उपाय करने का परामर्ष दिया जाता है-- * दो संभोग या हस्त मैथुन के बीच कम से कम ४ दिन का अंतराल रखें। * नियमित व्यायाम और योग करें। * शराब और धूम्रपान त्याग दें। * अधिक तीक्छण मसालेदार , अम्लता प्रधान और ज्यादा कडवे भोजन हानिकारक है। * ११ बादाम रात को पानी में भिगो दें। सुबह में छिलकर ब्लेन्डर में आधा गिलास गाय के दूध मे,एक चुटकी इलायची,केसर,अदरख भी डालकर चलाएं। यह नुस्खा वीर्य में शुक्राणुओं की तादाद बढाने का अति उत्तम उपाय है। * सफ़ेद प्याज का रस २ किलो निकालें ,इसमें एक किलो शहद मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं। जब सिर्फ़ शहद ही बच जाए तो आंच से अलग करलें । इसमें ५०० ग्राम सफ़ेद मूसली का चूर्ण मिलाकर कांच या चीनी मिट्टी के बर्तन में भर लें। सुबह-शाम दो १० से २० ग्राम की मात्रा में लेते रहने से वीर्य में शुक्राणुओं का इजाफ़ा होता है और नपुंसकता नष्ट होती है। * गाजर का रस २०० ग्राम नित्य पीने से शुक्राणु अल्पता में उपकार होता है । * शतावर और असगंध के ५ ग्राम चूर्ण को एक गिलास दूध के साथ पीना बेहद फ़ायदेमंद है। * कौंच के बीज,मिश्री,तालमखाना तीनों बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनालें। ३-३ ग्राम चूर्ण सुबह शाम दूध के साथ लेने से शुक्राणु अल्पता समाप्त होकर पुरुषत्व बढता है। * गोखरू को दूध में ऊबालकर सुखावें। यह प्रक्रिया ३ बार करें। फ़िर सुखाये हुए गोखरू का चूर्ण बनालें। ५ ग्राम की मात्रा में उपयोग करने से मूत्र संस्थान के रोग ,नपुंसकता और शुक्राणु अल्पता मे आशातीत लाभ होता है। * याद रहे सुबह ४ बजे और अपरान्ह में शरीर में शुक्राणुओं का स्तर उच्चतम रहता है। अत: गर्भ स्थापना के लिये ये समय महत्व के हैं। * मशरूम में प्रचुर ज़िन्क होता है इसके सेवन से वीर्य में शुक्राणु बढते हैं ।इसमे डोपेमाईन होता है जो कामेच्छा जागृत करता है। * भोजन में लहसुन और प्याज शामिल करें। शुक्राणु की गुणवत्ता बढाने के लिए यह करे उपाय..... * अखरोट खाने से पुरूषों में शुक्राणुओं की संख्या और उसकी गुणवत्ता दोनों बढ सकती है। * वैज्ञानिकों ने 20 से 30 वर्ष उम्र सीमा के युवकों के एक समूह को तीन महीने के लिए रोज 75 ग्राम अखरोट खाने को कहा। अनुसंधानकर्ताओंने पाया कि अखरोट नहीं खाने वाले पुरूषों की तुलना में ऎसा करने वाले पुरूषों के शुक्राणुओं की संख्या में और उसकी गुणवत्ता दोनों में बढोतरी हुई और उनके पिता बनने की संभावनाएं भी बेहतर हुईं। * अनुसीअनसेचुरेटेड वसा का मुख्य स्त्रेत है। अखरोट में मछली में पाया जाने वाला ओमेगा-3 और ओमेगा-6 भी पर्याप्त मात्र में होता है। * माना जाता है कि यह दोनों शुक्राणु के विकास और उसकी कार्यप्रणाली के बहुत महत्वपूर्ण होते हैं लेकिन ज्यादा पश्चिमी व्यंजनों में इसका अभाव होता है। प्रत्येक छह में से एक दंपति को गर्भधारण करने में समस्या आती है और ऎसा माना जा रहा है कि इसमें 40 प्रतिशत मामले पुरूष के शुक्राणु के कारण आते हैं।

Wednesday, September 10, 2014

सोरायसिस (अपरस), (छालरोग) भयानक चर्म रोग PSORISIS


सोरियासिस एक प्रकार का चर्म रोग है जिसमें त्वचा में सेल्स की तादाद बढने लगती है।चमडी मोटी होने लगती है और उस पर खुरंड और पपडियां उत्पन्न हो जाती हैं। ये पपडिया ं सफ़ेद चमकीली हो सकती हैं।इस रोग के भयानक रुप में पूरा शरीर मोटी लाल रंग की पपडीदार चमडी से ढक जाता है।यह रोग अधिकतर केहुनी,घुटनों और खोपडी पर होता है। अच्छी बात ये कि यह रोग छूतहा याने संक्रामक किस्म का नहीं है। रोगी के संपर्क से अन्य लोगों को कोई खतरा नहीं है। माडर्न चिकित्सा में अभी तक ऐसा परीक्षण यंत्र नहीं है जिससे सोरियासिस रोग का पता लगाया जा सके। खून की जांच से भी इस रोग का पता नहीं चलता है। यह रोग वैसे तो किसी भी आयु में हो सकता है लेकिन देखने में ऐसा आया है कि १० वर्ष से कम आयु में यह रोग बहुत कम होता है। १५ से ४० की उम्र वालों में यह रोग ज्यादा प्रचलित है। लगभग १ से ३ प्रतिशत लोग इस बीमारी से पीडित हैं। इसे जीवन भर चलने वाली बीमारी की मान्यता है। चिकित्सा विग्यानियों को अभी तक इस रोग की असली वजह का पता नहीं चला है। फ़िर भी अनुमान लगाया जाता है कि शरीर के इम्युन सिस्टम में व्यवधान आ जाने से यह रोग जन्म लेता है।इम्युन सिस्टम का मतलब शरीर की रोगों से लडने की प्रतिरक्षा प्रणाली से है। यह रोग आनुवांशिक भी होता है जो पीढी दर पीढी चलता रहता है।इस रोग का विस्तार सारी दुनिया में है। सर्दी के दिनों में इस रोग का उग्र रूप देखा जाता है। कुछ रोगी बताते हैं कि गर्मी के मौसम में और धूप से उनको राहत मिलती है। एलोपेथिक चिकित्सा मे यह रोग लाईलाज माना गया है। उनके मतानुसार यह रोग सारे जीवन भुगतना पडता है।लेकिन कुछ कुदरती चीजें हैं जो इस रोग को काबू में रखती हैं और रोगी को सुकून मिलता है। मैं आपको एसे ही उपचारों के बारे मे जानकारी दे रहा हूं---
१) बादाम १० नग का पावडर बनाले। इसे पानी में उबालें। यह दवा सोरियासिस रोग की जगह पर लगावें। रात भर लगी रहने के बाद सुबह मे पानी से धो डालें। यह उपचार अच्छे परिणाम प्रदर्शित करता है। २) एक चम्मच चंदन का पावडर लें।इसे आधा लिटर में पानी मे उबालें। तीसरा हिस्सा रहने पर उतारलें। अब इसमें थोडा गुलाब जल और शकर मिला दें। यह दवा दिन में ३ बार पियें।बहुत कारगर उपचार है। ३) पत्ता गोभी सोरियासिस में अच्छा प्रभाव दिखाता है। उपर का पत्ता लें। इसे पानी से धोलें।हथेली से दबाकर सपाट कर लें।इसे थोडा सा गरम करके प्रभावित हिस्से पर रखकर उपर सूती कपडा लपेट दें। यह उपचार लम्बे समय तक दिन में दो बार करने से जबर्दस्त फ़ायदा होता है। ४) पत्ता गोभी का सूप सुबह शाम पीने से सोरियासिस में लाभ होते देखा गया है।प्रयोग करने योग्य है। ५) नींबू के रस में थोडा पानी मिलाकर रोग स्थल पर लगाने से सुकून मिलता है। नींबू का रस तीन घंटे के अंतर से दिन में ५ बार पीते रहने से छाल रोग ठीक होने लगता है। ६)शिकाकाई पानी मे उबालकर रोग के धब्बों पर लगाने से नियंत्रण होता है। ७) केले का पत्ता प्रभावित जगह पर रखें। ऊपर कपडा लपेटें। फ़ायदा होगा। ८) कुछ चिकित्सक जडी-बूटी की दवा में steroids मिलाकर ईलाज करते हैं जिससे रोग शीघ्रता से ठीक होता प्रतीत होता है। लेकिन ईलाज बंद करने पर रोग पुन: भयानक रूप में प्रकट हो जाता है। ट्रायम्सिनोलोन स्टराईड का सबसे ज्यादा व्यवहार हो रहा है। यह दवा प्रतिदिन १२ से १६ एम.जी. एक हफ़्ते तक देने से आश्चर्यजनक फ़ायदा दिखने लगता है लेकिन दवा बंद करने पर रोग पुन: उभर आता है। जब रोग बेहद खतरनाक हो जाए तो योग्य चिकित्सक के मार्ग दर्शन में इस दवा का उपयोग कर नियंत्रण करना उचित माना जा सकता है।

Tuesday, September 9, 2014

बवासीर

दोस्तों बवासीर ऐसी बीमारी है जो किसी भी आदमी का रात दिन का चैन सुकून छीन लेता है.....देसी दवाइयों से इसका कामयाब इलाज संभव है यदि परहेज़ ध्यान रखा जाए
............... पाइल्स (बवासीर, अर्श): वात, पित, कफ़ ये तीनो दोष त्वचा, मांस, मेदा को दूषित करके गुदा के अंदर और बाहरी स्थानों मैं मांस के अंकुर (मस्से/फफोले) तैयार करते हैं. इन्ही मांस के अंकुरों को बवासीर या अर्श कहते हैं ! ये मांस के अंकुर गुदामार्ग का अवरोध करते हैं और मलत्याग के समय शत्रु की भांति पीड़ा करते हैं ! इसलिए इनको अर्श भी कहा जाता है. ( चरक) बवासीर का सबसे उत्तम उपचार आयुर्वेद के द्वारा ही किया जा सकता है ! आयुर्वेदिक उपचार एक बहुत ही सुलझा और बिना साइड इफ़ेक्ट का उपचार है ! पाइल्स को पूरी तरह से आयुर्वेदिक तरीके से ही ठीक किया जा सकता है| बाहरी लक्षणों के कारण भेद: बवासीर 2 प्रकार (kind of piles) की होती हैं। एक भीतरी(खूनी) बवासीर तथा दूसरी (बादी) बाहरी बवासीर। भीतरी / ख़ूनी बवासीर / आन्तरिक / रक्‍त स्रावी अर्श / रक्तार्श ख़ूनी बवासीर में मलाशय की आकुंचक पेशी के अन्दर अर्श होता है तो वह म्युकस मेम्ब्रेन (Mucous Membrane) से ढका रहता है। ख़ूनी बवासीर में किसी प्रक़ार की तकलीफ नहीं होती है केवल ख़ून आता है। पहले मल में लगके, फिर टपक के, फिर पिचकारी की तरह से सिर्फ़ ख़ून आने लगता है। इसके अन्दर मस्सा होता है। जो कि अन्दर की तरफ होता है फिर बाद में बाहर आने लगता है। मलत्याग के बाद अपने से अन्दर चला जाता है। पुराना होने पर बाहर आने पर हाथ से दबाने पर ही अन्दर जाता है। आख़िरी स्टेज में हाथ से दबाने पर भी अन्दर नहीं जाता है। भीतरी बवासीर हमेशा धमनियों और शिराओं के समूह को प्रभावित करती है। फैले हुए रक्त को ले जाने वाली नसें जमा होकर रक्त की मात्रा के आधार पर फैलती हैं तथा सिकुड़ती है। इस रोग में गुदा की भीतरी दीवार में मौजूद ख़ून की नसें सूजने के कारण तनकर फूल जाती हैं। इससे उनमें कमज़ोरी आ जाती है और मल त्याग के वक़्त ज़ोर लगाने से या कड़े मल के रगड़ खाने से ख़ून की नसों में दरार पड़ जाती हैं और उसमें से ख़ून बहने लगता है। इस बवासीर के कारण मस्सों से ख़ून निकलने लगता है। यह बहुत भयानक रोग है, क्योंकि इसमें पीड़ा तो होती ही है साथ में शरीर का ख़ून भी व्यर्थ नष्ट होता है। बाहरी / बादी बवासीर / अरक्‍त स्रावी या ब्राह्य अर्श बादी बवासीर रहने पर पेट ख़राब रहता है। कब्ज बना रहता है। गैस बनती है। इसमें जलन, दर्द, खुजली, शरीर मै बेचैनी, काम में मन न लगना इत्यादि। मल कडा होने पर इसमें ख़ून भी आता है। इसमें मस्सा अन्दर होने की वजह से मल का रास्ता छोटा पड़ता है और चुनन फट जाती है और वहाँ घाव हो जाता है उसे फिशर भी कहते हें। जिससे असहाय जलन और पीडा होती है। बवासीर बहुत पुराना होने पर भगन्दर हो जाता है। जिसे अंग़जी में फिस्टुला कहते हें। फिस्टुला कई प्रक़ार का होता है। भगन्दर में मल के रास्ते के बगल से एक छेद हो जाता है जो मल की नली में चला जाता है। और फोड़े की शक्ल में फटता, बहता और सूखता रहता है। कुछ दिन बाद इसी रास्ते से मल भी आने लगता है। बवासीर, भगन्दर की का इलाज़ अगर ज्यादा समय तक ना करवाया जाये तो केंसर का रूप भी ले सकता है। जिसको रिक्टम केंसर कहते हें। जो कि जानलेवा साबित होता है। ऐसा होने की सम्भावना बहुत ही कम होती है | बवासीर के भेद/प्रकार: जन्म के बाद हमारे शारीरिक त्रिदोषों के कारण बवासीर के छः भेद हैं ! जिनमे १. तीनो दोषों (वात, पित,कफ़) से अलग -२ से तीन प्रकार की होती है! २. सहज (जन्म) से एक ! ३. त्रिदोष दोषों से एक ! ४. रक्त दोष से एक ! वात अर्श : वात से उत्पन्न अर्श के मांस अंकुर शुष्क, चिम्चिमाह्ट वाले, मुरझाये हुए, श्वेत, लाल और छोटे- बड़े, उप्पेर नीचे, और तीरछे होते हैं. इनका आकार कंदूरी, बेर. खर्जूर के फुल के सम्मान होता है! और रोगी रुक-२ कर बहुत मुश्किल से बंधा हुआ मॉल त्याग करता है ! पित अर्श: पित प्रधान अर्श मैं मांस के अंकुर नीले मुख के, लाल, पीले, या कालिख लिए होते हैं. इनसे, स्वच्छ, पतला, रक्त (ब्लड) बहता है ! और दुर्गन्ध भी आती है! ये मांस के अंकुर ढीले, पतले, कोमल, तोते की जीभ, जोंन्क (लीच) के मुख के समान होते हैं ! रोगी पतला, नीला, गर्म, पीला या रक्त और आम से युक्त मल त्याग करता है ! मल त्याग के समय असहनीय पीड़ा होती है ! कफ़ अर्श: कफ प्रधान बवासीर के मस्से अंकुर मूल से मोटे, स्थूल, मंद पीड़ा वाले और श्वेत (वाइट) रंग के होते हैं ! लम्बे, नर्म, गोल, बड़े, चिकने होते हैं और छूने से सुख का अनुभव कराने वाले होते हैं ! इनका आकार करीर या कटहल के बीज या गाये के स्तन के समान होता है! रोगी बसा की भांति कफ़युक्त और बहुत कम मात्र मैं मल का त्याग करता है ! थोडा पित मैं मरोड़ के साथ मल आता है. ये मांस अंकुर/ मस्से न बहते हैं न फूटते हैं. त्रिदोष और सहज अर्श : तीनो दोषों के मिश्रण से उत्पन्न बवासीर के मांस अंकुर उपर लिखित तीनो दोषों से युक्त लक्षण वाले होते हैं! रक्त दोष अर्श : रक्त की अधिकता वाले मांस अंकुर पित से उत्पन अर्श अंकुरों के समान होते है !बरगद के अंकुर, गुंजा या प्रवाल की तरह ये अंकुर होते हैं! मल त्याग के समय इन मांस अंकुरों से बहुत दूषित और गर्म रक्त (खून) एकदम से बहने लगता है! इस रक्त के ज्यादा बहने से रोगी कमजोरी महसूस करता है ! पाइल्स की उत्पति के कारण…….. पाइल्स या बवासीर को आधुनिक सभ्यता का विकार कहें तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। खाने पीने मे अनिमियता, जंक फ़ूड का बढता हुआ चलन और व्यायाम का घटता महत्त्व, लेकिन और भी कई कारण हैं बवासीर के रोगियों के बढने में। पाइल्स होने के मुख्या कारण निम्नलिखित हैं - कब्ज- बवासीर रोग होने का मुख्य कारण पेट में कब्ज बनना है। दीर्घकालीन कब्ज बवासीर की जड़ है। 50 से भी अधिक प्रतिशत व्यक्तियों को यह रोग कब्ज के कारण ही होता है। सुबह-शाम शौच न जाने या शौच जाने पर ठीक से पेट साफ़ न होने और काफ़ी देर तक शौचालय में बैठने के बाद मल निकलने या ज़ोर लगाने पर मल निकलने या जुलाब लेने पर मल निकलने की स्थिति को कब्ज होना कहते हैं। इसलिए जरूरी है कि कब्ज होने को रोकने के उपायों को हमेशा अपने दिमाग में रखें। कब्ज की वजह से मल सूखा और कठोर हो जाता है जिसकी वजह से उसका निकास आसानी से नहीं हो पाता। मलत्याग के वक़्त रोगी को काफ़ी वक़्त तक पखाने में उकडू बैठे रहना पड़ता है, जिससे रक्त वाहनियों पर ज़ोर पड़ता है और वह फूलकर लटक जाती हैं। कब्ज के कारण मलाशय की नसों के रक्त प्रवाह में बाधा पड़ती है जिसके कारण वहां की नसें कमज़ोर हो जाती हैं और आन्तों के नीचे के हिस्से में भोजन के अवशोषित अंश अथवा मल के दबाव से वहां की धमनियां चपटी हो जाती हैं तथा झिल्लियां फैल जाती हैं। जिसके कारण व्यक्ति को बवासीर हो जाती है। यह रोग व्यक्ति को तब भी हो सकता है जब वह शौच के वेग को किसी प्रकार से रोकता है। भोजन में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी होने के कारण बिना पचा हुआ भोजन का अवशिष्ट अंश मलाशय में इकट्ठा हो जाता है और निकलता नहीं है, जिसके कारण मलाशय की नसों पर दबाव पड़ने लगता हैं और व्यक्ति को बवासीर हो जाती है। गरिष्ठ भोजन - अत्यधिक मिर्च, मसाला, तली हुई चटपटी चीज़ें, मांस, अंडा, रबड़ी, मिठाई, मलाई, अति गरिष्ठ तथा उत्तेजक भोजन करने के कारण भी बवासीर रोग हो सकता है। अधिक भोजन - अतिभोजन अर्श रोग मूल कारणम्‌ अर्थात्‌ आवश्यकता से अधिक भोजन करना बवासीर का प्रमुख कारण है। शौच करने के बाद मलद्वार को गर्म पानी से धोने या अच्छी तरह से ना धोने से भी बवासीर रोग हो सकता है। दवाईयों का अधिक सेवन करने के कारण भी यह रोग व्यक्ति को हो सकता है। डिस्पेपसिया और किसी जुलाब की गोली का अधिक दिनॊ तक सेवन करना। रात के समय में अधिक जगना भी बवासीर का के होने का एक मुख्या कारण है | रात को जागने से शरीर की पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है और कब्ज को पैदा करती है| कुछ व्यक्तियों में यह रोग पीढ़ी दर पीढ़ी पाया जाता है। अतः अनुवांशिकता इस रोग का एक कारण हो सकता है। जिन व्यक्तियों को अपने रोज़गार की वजह से घंटों खड़े रहना पड़ता हो, जैसे बस कंडक्टर, ट्रॉफिक पुलिस, पोस्टमैन या जिन्हें भारी वजन उठाने पड़ते हों,- जैसे कुली, मजदूर, भारोत्तलक वगैरह, उनमें इस बीमारी से पीड़ित होने की संभावना अधिक होती है। बवासीर गुदा के कैंसर की वजह से या मूत्र मार्ग में रूकावट की वजह से या गर्भावस्था में भी हो सकता है। गर्भावस्था मे भ्रूण का दबाब पडने से स्त्रियों में यह रोग अकसर हो जाता है | बवासीर मतलब पाइल्स यह रोग बढ़ती उम्र के साथ जिनकी जीवनचर्या बिगड़ी हुई हो, उनको होता है। सुबह देर से उठना, रात को देर से सोना और समय पर भोजन न करना, जैसे अव्यब्स्थित दिनचर्या इसका मुख्या कारण है| यकृत :- पाचन संस्थान का यकृत सर्वप्रधान अंग है। इसके भीतर तथा यकृत धमनी आदि में पोर्टल सिस्टम रक्‍त की अधिकता होकर यह रोगित्पन्‍न होता है। जैसे – सिरोसिस आफ़ लिवर। हृदय की कुछ बीमारियाँ। उदरामय - निरन्तर तथा तेज उदरामय निश्‍चित रूप से बवासीर उत्पन्‍न करता है। मद्यपान एवं अन्य नशीले पदार्थों का सेवन – अत्यधिक शराब, ताड़ी, भांग, गांजा, अफीम आदि के सेवन से बवासीर होता है। चाय एवं धूम्रपान - अधिकाधिक चाय, कॉफी आदि पीने तथा दिन रात धूम्रपान करने से अर्शोत्पत्ति होती है। पेशाब संस्थान - मूत्राशय की गड़बड़ी, पौरुष ग्रन्थि की वृद्धि, मूत्र पथरी आदि रोग में पेशाब करते समय ज़्यादा ज़ोर लगाने के कारण” भी यह रोग होता है। मल त्याग के समय या मूत्र नली की बीमारी मे पेशाब करते समय काँखना। शारीरिक परिश्रम का अभाव - जो लोग दिन भर आराम से बैठे रहते हैं और शारीरिक श्रम नहीं करते उन्हें यह रोग हो जाता है। क्या न करें : चाय, कॉफ़ी, ठंडा कोल्ड ड्रिंक,जूस और गर्म कोई भी बाहरी पेय पदार्थ न पीयें| बाहर का बना हुआ जंक फ़ूड या कोई भी वास्तु ना ! हमेशा घर का बना हुआ खाना ही खायें | इलाज़ के दौरान कोई भी खट्टी (इमली, टमाटर, आचार, नीम्बू, दहीं, छाछ, मौसमी, और इस तरह की कोई भी) चींजों का सेवेन बिळकुल ना करें ! किसी भी तरह के मांसाहारी भोजन (मांस, मछली, अंडा, समुद्री भोजन) का सेवन न करें ! ना ही मांसाहारी पेय जैसे सूप आदि का सेवन न करें | इलाज़ के दौरान खाने में मिर्ची का प्रयोग बिलकुल न करें ! मिर्च किसी भी रूप (लाल, हरी, पाउडर, खड़ी) में न करें ! उपचार के दौरान तला हुआ, मसालेदार, और तड़का लगा हुआ खाना किसी भी रूप मैं न खाएं ! उबला हुआ खाना ही खाएं | इलाज़ के दौरान दूध से बनी हुयी भारी चीजों का सेवेन ना करें जैसे : चीज़, पनीर, खोया, दही, लस्सी, मिठाई, आदि ! दूध का सेवन दिन मैं एक बार किया जा सकता है ! इलाज़ के दौरान बेकरी की बनी हुयी कोई भी चीजें न खाएं जैसे : बिस्कुट, कूकीज, ब्रेड, केक, सैंडविच, बर्गर, पिज़्ज़ा आदि ! उपचार के दौरानभारी दालें जैसे : उरद, राजमाहा,रोंगी, सोयाबीन आदि का सेवन बिलकुल ना करें ! शराब का सेवेन बिलकुल भी न करें, धूम्रपान और तम्बाकू का सेवेन जितना हो सके उतना न करने की कोशिश करें ! उपचार के दौरान कोई भी भारी व्यायाम या काम न करें जैसे : भार उठाना, लम्बी दूरी की दौड़, आदि ! हल्का व्यायाम और योगा जरूर कीजिये ! योगा मैं आप प्राणायाम, शीर्शाशन, सूर्य नमस्कार दिन में १ घंटा जरूर करें! लम्बी यात्रा न करें ! ज्यादा देर तक बैठ कर या खड़े हो कर काम न करें ! हर एक घंटे बैठने के बाद १० मिनट के लिए इधर-उधर घूमे ! या हर एक घंटे खड़े रहने पैर थोड़ी देर के लिए बैठ जायें! देर रात तक काम न करें और सुबह देर तक सोते न रहिएँ ! जल्दी सोयें (8:30 – 9:00PM) और जल्दी उठें ( 4:00 – 4:30AM) ! क्या करें: खूब पानी पीयें ! कम से कम 4 – 5 लीटर पानी पीयें ! पानी एक साथ न पीयें ! एक बार मैं 100 मिलीलीटर से जयादा न पीयें ! सुबह – शाम एक-२ गिलास गरम पानी का पीयें ! नारियल का पानी जितना पी सकते हैं उतना पीयें! उपचार के दौरान मूली का रस/जूस दिन में तीन बार पीयें ! एक बार में 50 – 100 मिलीलीटर पीयें ! (हर रोज़ पीना जरूरी है) इलाज़ के दौरान हल्का, सादा, बिना तेल का, ताजा, और उबला हुआ खाना ही खाएं ! खाना बनाते समय तेल/घी, और बाजारू पीसे हुए मसालों का प्रयोग न करें ! खाना घर में ही बना कर खायें! उपचार के दौरान सब्जियों मैं मूली, शलगम, चुकंदर, बैगन, पत्तेदार सब्जियां जैसे सरसों, मूली, चोलाई, बिथुआ, मैथी, पालक, बंदगोभी, गाजर, करेला, लौकी, तोरी, ककड़ी, भिन्डी आदि का सेवन करें ! सब्जियों को उबाल कर ही खायें और बिना तेल से ही तैयार करें! उपचार के दौरान हल्की, सादी और उबली हुयी दालों का सेवेन करें ! दालों में चना दाल, अरहर दाल, मसूर दाल, साबुत मूंग, मूंग दाल, आदि का सेवन ही करें ! दालें उबाल केर ही पकायें और तेल आदि का इस्तेमाल बिलकुल न करें ! इलाज़ के दौरान फलों में पपीता, तरबूज, अमरुद, अंजीर, नाशपाती, सेब, आडू, नारियल आदि का सेवेन करें ! फलों का जुके पीयें! अंकुरित मूंग और चना का सेवेन दिन में एक बार जरूर करें ! (50 – 100 ग्राम) अंकुरित मूंग और चन्ना की सब्जी या सूप पीयें. दाल, सब्जी या सूप बनाते समय थोडा सा कच्छा अदरक, काची हल्दी, चुटकी भर अज्वायेंन, जीरा, मैथी दाना, जर्रो डालें ! दाल, सब्जी और सूप उबला हुआ ही खायें! खाने मैं तड़का न दें ! उपचार के दौरान रात को सोने से पहले एक चमच त्रिफला पाउडर गरम पानी के साथ जरूर सेवेन करें ! खाने के सुझाव: नाश्ता : नाश्ते में दूध में बना दलिया/पोहा/जौ या जई/रवा इडली (चावल और दाल वाली इडली नहीं)/कॉर्न फलैक्स/फल-सब्जी का सलाद/उपमा/अंकुरित मूंग और चना/अंकुरित चना और मूंग का सूप आदि ! खाना (दिन) : मूंग और चावल (अगर लाल चावल हैं तो अच्छा है) की खिछ्डी/सब्जियां और गेंहू/बाजरा/कोदरा/रागी/ज्वार आदि के आटे की रोटी ! खाना (रात): कोई भी उपर लिखी दाल/सब्जी चावल या गेंहू/बाजरा/कोदरा/रागी/ज्वार आदि के आटे की रोटी के साथ सेवन करें ! सब्जी में घर का बना हुआ मक्खन १/२ चमच डाल सकते हैं. बाजारू मक्खन/घी न डालें ! बवासीर की चिकित्सा -------------------- आयुर्वेद की औषधि “अर्श कुठार रस” की दो गोली सुबह और शाम मठे के साथ अथवा दही की पतली नमकीन लस्सी के साथ रोजाना १२० दिन तक ले अथवा सेवन करें / भोजन के बाद आयुर्वेद की शास्त्रोक्त दवा ” अभयारिष्ट” और “रोहितिकारिष्ट” चार चम्म्च लेकर इसके बराबर चार चम्मच सादा पानी मिलाकर lunch और dinner के बाद दोनों समय सेवन करें /


Sunday, February 10, 2013

लहसुन को गरीबों का 'मकरध्वज' कहा जाता है



लहसुन के सेवन से रक्त में थक्का बनने की प्रवृत्ति बेहद कम हो जाती है, जिससे हृदयाघात का ख़तरा टलता है। यह बिंबागुओं (Platelates) को चिपकने से रोकता है। थक्कों को गलाता है। धमनियों को फैलाकर रक्तचाप घटाता है। हाई ब्लड प्रेशर वालों के लिए यह अमृत के समान है। नियमित लहसुन को दूध में उबालकर लेते रहने से ब्लडप्रेशर कम या ज़्यादा होने की बीमारी नहीं होती।
  • कॉलेस्ट्रोल की समस्या से पीड़ित लोगों के लिए लहसुन का नियमित सेवन अमृत साबित हो सकता है। वैज्ञानिकों ने भी इस तथ्य की पुष्टि की है कि लगातार चार हफ्ते तक लहसुन खाने से कॉलेस्ट्रोल का स्तर 12 प्रतिशत तक या उससे भी कम हो सकता है। जिगर के अंदर मेटाबोलिज्म में सुधार लाकर कोलेस्ट्रॉल कम करता है और एरिथमिया को नियमित करता है। 'जर्नल ऑफ न्यूट्रीशन' के एक अध्ययन के मुताबिक लहसुन के सेवन से कोलेस्ट्रॉल में 10 फीसदी गिरावट आती है। यदि रोज नियमित रूप से लहसुन की पाँच कलियाँ खाई जाएँ तो हृदय संबंधी रोग होने की संभावना में कमी आती है।
  • लहसुन की तीक्ष्णता और रोगाणुनाशक विशेषता के कारण यह चिकित्सा जगत में उपयोगी कंद है। मेहनतकश किसान-मजदूर तो लहसुन की चटनी, रोटी खाकर स्वस्थ और कर्मठ बने रहते हैं। षडरस भोजन के 6 रसों में से पाँच रस लहसुन में सदैव विद्यमान रहते हैं। सिर्फ 'अम्ल रस' नहीं रहता। आज षडरस आहार दुर्लभ हो चला है। लहसुन उसकी आपूर्ति के लिए हर कहीं सस्ता, सुलभ है। लहसुन को गरीबों का 'मकरध्वज' कहा जाता है। वह इसलिए कि इसका लगातार प्रयोग मानव जीवन को स्वास्थ्य संवर्धक स्थितियों में रखता है। हेल्थ एक्सपर्ट हर रोज सुबह-उठकर ख़ाली पेट लहसुन की दो-तीन कलियां गुनगुने पानी से लेने की बात कहते हैं।
  • तेज गंध वाली लहसुन एक संजीवनी है जो कैंसर, एड्स और हृदय रोग के विरुद्ध सुरक्षा कवच बन सकती है। त्वचा को दाग़-धब्बे रहित बनाने, मुंहासों से बचने और पेट को साफ़ करने में भी लहसुन बढिय़ा है। इसे बादी कम करने वाला माना जाता है, इसीलिए बैंगन या उड़द की दाल जैसी बादी करने वाली चीजों में इसे डालने की सलाह दी जाती है। यह खून को साफ़ कर शरीर के अंदरूनी सिस्टम की सफाई करता है। अगर आपका वजन अधिक है और इसे कम करना चाहते हैं तो सुबह-शाम लहसुन की दो-दो कलियां खाएं। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मज़बूत करने, कैंसर, अल्सर और हैमरॉयड से लडऩे में लहसुन को फ़ायदेमंद बताया गया है। इसमें मौजूद सल्फर से एलर्जी महसूस करने वाले इसे न ही खाएं और न ही त्वचा पर लगाएं।

  • लहसुन का पौधा
    हर घर में खाया जाने वाले लहसुन भी ऐसी ही एक गुणकारी दवा है। 'लशति छिंनति रोगान लशुनम्' अर्थात् जो रोग का ध्वंस करे उसे लहसुन (Garlic) कहते हैं। इसे रगोन् भी कहते हैं। लहसुन गुणों से भरपूर भारतीय सब्जियों का स्वाद बढ़ाने वाला ऐसा पदार्थ है जो प्रायः हर घर में इस्तेमाल किया जाता है। ज़्यादातर लोग इसे सिर्फ मसाले के साथ भोजन में ही इस्तेमाल करते हैं। परंतु यह औषधि के रूप में भी उतना ही फ़ायदेमंद है। लहसुन से होने वाले लाभ और इसके चिकित्सीय गुण सदियों पुराने हैं। शोध और अध्ययन बताते हैं कि आज से 5000 वर्ष पहले भी भारत में लहसुन का इस्तेमाल उपचार के लिए किया जाता था। 

पूरी इल्मी जानकारी भारत डिस्कवरी पे -


http://hi.bharatdiscovery.org/india/%E0%A4%B2%E0%A4%B9%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%A8