जुलाब की जरूरत क्या है ?
जुलाब के क्या लाभ हैं?
जो लोग अभी तक सफाई का अर्थ नहाना, धोना आदि बाहरी सफाई ही समझते हैं वे बड़े भ्रम में हैं। शरीर के ऊपर का मैल तो हमको दिखाई ही पड़ता है और इसलिए हमारा ध्यान बार-बार उसकी ओर जाता रहता है और हम उसे साफ कर ही डालते हैं। पर भीतरी गन्दगी आँखों से दिखाई नहीं देती उसे केवल अनुभव से या लक्षणों से जाना जाता है। इसलिए अनेक लोगों का ध्यान उस तरफ नहीं जाता। पर कुछ भी हो वह गन्दगी अधिक हानि पहुँचाने वाली होती है और धीरे-धीरे हमारे समस्त शरीर को मल से भर देती है। यही मल सब प्रकार के रोगों तथा अस्वस्थता का कारण होता है और जो लोग बीमारी और कमजोरी को दूर करना चाहते हैं उनका सबसे पहला कर्तव्य इस मल की सफाई कर डालना ही है। शरीर की इस अवस्था की तुलना हम उस नाली के साथ कर सकते हैं जो कीचड़ रुक जाने से सड़ रही हो और दुर्गन्ध फैला रही हो। बहुत से लोग ऐसी नाली में फिनाइल आदि डालकर उसकी बदबू को रोकने की कोशिश करते हैं पर यह उपाय टिकाऊ नहीं होता। दूसरे ही दिन फिर पहले से अधिक बदबू आने लगती है। तब अन्त में यही करना पड़ता है कि एक बार नाली में जमें हुए कीचड़ को पूरी तरह निकाल दिया जाय और फिर उसे साफ पानी से धो डाला जाये । ठीक इसी प्रकार छोटी और बड़ी आँतों में इकट्ठा होकर हमारे जो मल शरीर को अस्वस्थ बनाता है जब तक एक बार उसकी पूरी सफाई नहीं की जायेगी तब तक रोग की जड़ का सम्भव नहीं है।
2- जुलाब लेने से सेहत में आराम आता है।
3- पेट की आग यानी भूख भड़क उठती है।
4- बुढ़ापा जल्दी नहीं आता।
किस रोगी को जुलाब (रेचक) औषधि देनी चाहिए।
1- जिन्हें जहर दिया गया हो।
2- बुखार वालों को
3- कफ की अधिकता वालों के लिए
4- बवासीर
5- जिन्हें पेट में दर्द है और जिन्हें भूख नहीं लगती है।
6- पीलिया
7- गठिया वाले लोगों के लिए
8- मर्दाना कमजोरी वाले लोगों के लिए।
9- हृदय रोग वालों के लिए।
10. खराब रक्त, सूजाक और उपदंश, और घातक रोग और कोढ़।
11- नाक और कान के रोग।
12- मुंह और दांतों के रोग
13- मानसिक रोग, मिर्गी।
14- उल्टी, हैजा, पेट फूलना।
15- नेत्र रोग
16- सूजन और बेचैनी वाले लोगों के लिए
17- दमा, खांसी
18- पागलपन, उन्माद और उदासी
यदि इन रोगों से पीड़ित है तो जुलाब दिया जा सकता है।
जुलाब किसे नहीं लेना चाहिए?
1- नाजुक स्वभाव वालों के लिए।
2- जिन्हें मलद्वार में घाव हो गया हो।
3- जिनकी कांच बाहर आती हो।
4- बिगड़े हुए रोगी।
5- भूख से बहुत कमजोर और शरीर का तापमान कम हो।
6- नये बुखार मे
7- घाव के दर्द से पीड़ित
8- बहुत मोटा
9- बहुत कोमल, बच्चे, बूढ़े, प्यास से डरने वाले।
10- भूख से पीड़ित लोग
11- संभोग ,अध्ययन और व्यायाम से थके हुए चिंतित लोग।
12- गर्भवती महिलाओं को जुलाब नहीं देना चाहिए।
अगर देने की जरूरत है, तो एक बहुत ही हल्का रेचक दिया जाना चाहिए, जिससे केवल दो से तीन बार मल आ सकें अधिक नहीं।
जुलाब (रेचक) विधि
जिस दिन रेचक देना हो उस दिन की पहली रात को रोगी को नर्म सुपाच्य भोजन जैसे खिचड़ी और खट्टे फल और ऊपर से पानी पिलाना चाहिए।
दूसरे दिन जब आप देखें कि पेट फूल गया है, तो रोगी को पेट की ताकत के अनुसार रेचक औषधि दें।
रेचक लेने के बाद रोगी को क्या करना चाहिए?
जुलाब लेने वाले व्यक्ति को शौच करने की आवश्यकता होने पर रोकना नहीं चाहिए, उसे हवा से बचना चाहिए।
मेहनत करना बंद कर दें और संभोग से दूर रहें।
जुलाब से क्या निकलता है
जैसे उल्टी मे राल, औषधि, कफ आदि क्रमानुसार बाहर आते हैं, वैसे ही जुलाब में मल, पित्त औषधि और कफ क्रमशः बाहर निकलते हैं। शुरू में मल गिरता है और कफ अंत में गिरता है। सख्त जुलाब में 20 बार दस्त आते हैं
सख्त रेचक में दो सौ तोला, मध्यम रेचक में एक सौ तोला और हल्के रेचक में साठ तोला मल बाहर आता है
।
रेचक ठीक से लगाया गया हो तो खाँसी के साथ सारा गंदा कफ बाहर आ जाता है, इससे नाभि के चारों ओर हल्कापन और हृदय में आनंद के लक्षण दिखाई देते हैं। ऐसा लगने लगता है कि स्वास्थ्य खुल गया है, पेट साफ होने लगता है। शरीर में जलन, खुजली, मल और पेशाब में रुकावट आदि की शिकायत खत्म होती है।
यदि रेचक ठीक से न लगाया जाए तो नाभि के नीचे कठोर महसूस होता है,पसलियों में दर्द होता है, मल के माध्यम से हवा पूरी तरह से बाहर नहीं निकल पाती है, गड़गड़ाहट की आवाज होती है। नीचे से निकलने वाली हवा में मल जैसी तेज गंध आती है। शरीर पर खुजली होती है। भारीपन, जलन, पेट फूलना, जी मिचलाना और उल्टी की शिकायत होती है।
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