
आज १९ जुलाई है आज मेरी ज़िन्दगी का वह दिन है जो मुझे हमेशा याद रहेगा आज ही के दिन मेरा प्यारा भाई शाहनवाज़ अहमद मुझसे हमेशा के लिए जुदा हो गया था एक साल गुज़रने के बाद और उसका होना जैसे कल ही की बात लगती है . इस एक साल का कोई एक दिन कोई पल ऐसा नहीं गुज़रा जिसमे मैंने उसे याद न किया हो. भी वह अपनी यादों के साथ मेरे दिल के करीब है. हर आदमी की अच्छाइयां ही उसकी यादों के साथ आती है और शाहनवाज़ मे तो बहुत सारी अच्छाइयां थी जो मुझे उसे भूलने नहीं देती और रह रह उसकी याद आती रहती है .हम कुल सात भाई बहन थे जिसमे से दो हम दो भाई यानि एक मै और दूसरा शाहनवाज़ था और बाकी पांच बहने है ज़िन्दगी बहुत हंसी ख़ुशी के साथ गुज़र रही थी लगता था की ज़िन्दगी बड़ी आसान है कयोंकि मेरी सारी मुश्किलात का हल तो शाहनवाज़ था उसके शब्दकोष मे मेरे काम के लिए न नाम का कोई शब्द नहीं था वोह मुझसे तकरीबन १० साल छोटा था मगर घर या क्लिनिक का कोई भी काम उसके बिना हो ही नहीं सकता था उसकी उम्र तकरीबन २० साल थी लेकिन इस छोटी उम्र मे वह बड़े काम आसानी से कर लेता थामरीजों की खिदमत और दीन की दावत उसका शोक था हर साल देवबंद में लगने वाले मेले मे एकता प्रदर्शनी मे ज़ोर शोर से हिस्सा लेता था लेकिन आज वह हमारे बीच नहीं है ब्लॉगगत मे अपने सभी साथियों से गुज़ारिश है की आप लोग शाहनवाज़ की मग्फ़िरत के लिए और घरवालो को सब्र के लिए दुआ करे
15 comments:
ज़िन्दगी बहुत हंसी ख़ुशी के साथ गुज़र रही थी लगता था की ज़िन्दगी बड़ी आसान है कयोंकि मेरी सारी मुश्किलात का हल तो शाहनवाज़ था
हिंदी ब्लॉग लेखकों के लिए खुशखबरी -
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inna lillah hi wa inna ilaihi rajiun
A true story of little girl Br'aah
http://towardshuda.wordpress.com/2010/02/18/a-true-story-a-little-girl-named-braah/
lets dua for all muslims who are not in this world now
ALLAH ham sabko mushkilon men sabr dene kii taufeeq ata farmaaye...
Himmat Se kam Le . Sab Prabhu Ki maya hai
ham aap ke gham men barabar ke shareek hen
शाहनवाज़ भाई तो डाक्टर साहब का था लेकिन वह हमारा भी बाज़ू था। बाला सुंदरी के मेले में इस्लामी साहित्य का स्टाल हम उसी के सहारे लगाया करते थे। इस साल वह नहीं था सो स्टाल भी नहीं लगा। वह गोरे रंग का पतला दुबला और बहुत कम बोलने वाला और सदा अपने बड़े भाई और वालिदैन की बात मानने वाला एक नौजवान लड़का था। हमें उसके जाने के बाद उसकी खूबियों का अहसास ज़्यादा हुआ और हो रहा है।
ज़िंदगी मिलती भी है और गुज़र भी जाती है। आज हम ज़िंदा हैं लेकिन क्या वाक़ई हम अपनी ज़िंदगी की क़द्र कर रहे हैं ?
हमारे भाई बहन मां बाप और रिश्तेदार जो ज़िंदा हैं उनके साथ हम कितना समय बिताते हैं ?
काश! हम ज़िंदगी की क़द्र करना सीख जाएं और इसे इस तरह गुज़ारें कि हम मालिक के मुजरिम बनकर उसके पास न पहुंचें।
काश! हम सब्र और शुक्र को अपना लें जिसकी मिसाल शाहनवाज़ के वालिदैन की ज़िंदगी में देखी जा सकती है।
अल्लाह तआला शाहनवाज़ की मग़फ़िरत फ़रमाये और उसे अपने क़ुर्ब में आला मक़ाम अता फ़रमाये।
आमीन । जो लोग कर सकते हैं वे उसे ईसाले सवाब ज़रूर करें।
अल्लाह तआला शाहनवाज़ की मग़फ़िरत फ़रमाये (आमीन )
अल्लाह आप को और आपके घरवालो को सब्र और अज्र दे.(आमीन )
@अयाज़ भाई ,
कहते हैं खुशियाँ बांटने से बढती हैं और गम बांटने से कम होता है ,हम तो सिर्फ कोशिश कर सकते हैं आपके दुःख में शामिल होने की लेकिन इसका असली दर्द तो आप ही जानते हैं लेकिन ब्लॉग्गिंग की मदद से आपका दुःख अब हमारा भी दुःख है
मेरी संवेदनाएं आपके साथ हैं
महक
अल्लाह तआला शाहनवाज़ की मग़फ़िरत फ़रमाये (आमीन )
अल्लाह तआला शाहनवाज़ की मग़फ़िरत फ़रमाये (आमीन )
अल्लाह मरहूम की मग्फ़िरत फरमाए. आमीन.
सफ़ेद कपड़े पहनाकर यदि कुछ लोगों को कोयलों की कोठरी में से होकर गुज़ारने के बाद उनका अवलोकन करें तो हम देखेंगे कि किसी व्यक्ति के कपड़ों पर कम दाग़ होंगे, किसी के कपडों पर अधिक होंगे, कुछ के कपड़े ऐसे होंगे कि रंग का पता ही न चलेगा और उनमें जो उत्तम श्रेणी के लोग होंगे उनके कपड़ों पर कोई दाग़ न होगा और वही कामयाब कहलाने के हक़दार होंगे। इन्हीं सब बातों को ध्यान नें रखते हुए हमको अपने जीवन का मक़सद समझना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि इस दुनिया से विदा होते समय हमारा दामन दाग़दार न हो।
http://haqnama.blogspot.com/2010/07/sharif-khan.html
हम आपके गम को महसूस कर सकते हैं! अल्लाह से दुआ करते हैं की आपको हिम्मत दें!
सेहत के लिए फायदेमंद है रोजा
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एकम् ब्रह्म द्वितीयो नास्ति , नेह , ना , नास्ति किंचन ।
अर्थात ब्रह्म एक है दूसरा नहीं है, नहीं है, नहीं है, किंचित भी नहीं है।
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