
सैनिकों के राशन पर सीएजी की फटकार का असर नज़र आने लगा है । रक्षा मंत्रालय ने अपने जवानों की सेहत की सुध लेते हुए उनके आहार को और पौष्टिक बनाने का फैसला किया है ।इस कवायद में फील्ड और पीस एरिया में तैनात जवानों को जहाँ अब हर दिन दो अंडे दिए जाएँगे ।वहीं नौ हज़ार फुट और उससे अधिक ऊँचाई पर तैनात जवानों को दिन में एक के बजाए दो अंडे मिलेंगे । (दैनिक जागरण 31 अगस्त 2010)
सैनिकों की यह खुराक बड़े वैज्ञानिक विश्लेषण के बाद तय की जाती है देश की रक्षा में तैनात जवानों की सेहत का पूरा ध्यान सरकार को रखना पड़ता है सिर्फ शाकाहार जवानों को संतुलित आहार प्रदान नही कर सकता क्योकि इससे शरीर मे सही मात्रा में प्रोटीन की ज़रूरत पूरी नही हो सकती । इसलिए सरकार ही का दायित्व है कि वह जवानों के संतुलित आहार का इंतजाम करे । क्योकि प्रोटीन की कमी के कारण जवानों मे कुपोषण हो सकता है और वह युद्ध के समय मे देश व सैनिकों के लिए घातक हो सकता है । अब देश के नागरिकों का भी फ़र्ज़ है वह भी देश के लिए हर परिस्थिति के लिए हर समय तैयार रहें देश के हर समय जान देने व लेने के लिए तैयार रहें । कभी ऐसी स्थिति आने पर मांसाहार न करने के कारण प्रोटीन की कमी के कारण कुपोषण से जूझते लोग क्या करेंगे ?
ऐसी स्थिति मे वह लोग पीठ दिखाने को विवश होंगे और पराजय का कारण भी बन सकते है । इसलिए हर व्यक्ति को प्रचुर मात्रा मे प्रोटीन के लिए रक्षा मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित मेन्यू अपनाने की ज़रूरत है । इसके लिए लोगों को अपने काल्पनिक अंधविश्वासो को बाधा नही बनने देना चाहिए ।
कुछ लोग मांसाहार के खिलाफ दुष्प्रचार करके अपने लोगों को कमजोर बना रहें है ऐसा करके वह लोग जाने अनजाने शत्रु देश का काम आसान कर रहें है । इस को लेकर समय रहते जागने की ज़रूरत है अतः सभी को मिलकर देश को मजबूत बनाने के लिए मांसाहार को बढ़ावा देने की ज़रूरत है
12 comments:
Sundy ho ya monday roj khawo ande
वंदेईश्वरम्
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई ।
अच्छी जानकारी ....
कृपया एक बार पढ़कर टिपण्णी अवश्य दे
(आकाश से उत्पन्न किया जा सकता है गेहू ?!!)
http://oshotheone.blogspot.com/
मुहम्मद ईशदूत (स.) ने फ़रमाया :
‘‘रोज़ा ढाल है। सो जब तुम में से किसी व्यक्ति का रोज़ा हो तो उसे चाहिए कि न अपशब्द मुंह से निकाले, न शोर करे और न अज्ञानता की बातें करे।‘‘ (मुस्लिम)
‘‘जिस व्यक्ति ने रोज़ा रखकर भी झूठ और झूठ के अनुसरण को न त्यागा तो अल्लाह को कोई ज़रूरत नहीं कि वह अपना खाना पीना छोड़े।‘‘ (बुख़ारी)
http://vedquran.blogspot.com/2010/09/comparative-study-about-fasting-by-s.html
‘‘देखो जब तुम उपवास करते हो तब तुम्हारा उद्देश्य अपनी इच्छाओं को पूर्ण करना होता है, तुम अपने मज़दूरों पर अत्याचार करते हो। देखो तुम केवल लड़ाई-झगड़ा करने के लिए उपवास करते हो। तुम्हारे आजकल के उपवास से तुम्हारी प्रार्थना स्वर्ग में नहीं सुनाई देगी।
यह कि हर इनसान का पेट एक बहुत बड़ा स्लॉटर हाउस (Slaughter house) की हैसियत रखता है। इस अदृष्ट स्लॉटर हाउस में रोज़ाना मिलियन एंड मिलियन सूक्ष्म जीव ख़त्म होते रहते हैं। इनकी संख्या इतनी ज़्यादा होती है कि सारी दुनिया में बड़े जानवरों के जितने स्लॉटर हाउस हैं उन सबमें कुल जितने जानवर मारे जाते हैं उनसे असंख्य गुना ज़्यादा ये सूक्ष्म जीव मारे जाते हैं।
इस सारे मामले का ताल्लुक़ रचयिता की सृष्टि योजना से है। उस रचयिता ने सृष्टि का जो विधान निश्चित किया है, वह यही है कि इनसान के जिस्म की आहार संबंधी ज़रूरत ज़िन्दा जीवों के ज़रिये पूरी हो। प्राकृतिक योजना के मुताबिक़ ज़िन्दा जीवों को अपने अन्दर दाखि़ल किये बिना कोई मर्द या औरत अपनी ज़िन्दगी को बाक़ी नहीं रख सकता। उस रचयिता के विधान के मुताबिक़ ज़िन्दा चीज़ें ही ज़िन्दा वजूद की खुराक बनती हैं। जिन चीज़ों में ज़िन्दगी न हो, वे ज़िन्दा लोगों के लिए खुराक की ज़रूरत पूरी नहीं कर सकतीं। इसका मतलब यह है कि वेजिटेरियनिज़्म (Vegetarianism)और नॉनवेजिटेरियनिज़्म (Non-vegetarianism) की परिभाषायें सिर्फ़ साहित्यिक परिभाषाएं हैं, वे वैज्ञानिक परिभाषाएं नहीं हैं।
इसका दूसरा मतलब यह है कि इस दुनिया में आदमी के लिये इसके सिवा कोई चॉइस नहीं है कि वह नॉन-वेजिटेरियन बनने पर राज़ी हो। जो आदमी ख़ालिस वेजिटेरियन बनकर ज़िन्दा रहना चाहता हो, उसे अपने आप को या तो मौत के हवाले करना होगा या फिर उसे एक और दुनिया रचनी होगी जहां के नियम मौजूदा दुनिया के नियमों से अलग हों। इन दो के सिवा कोई दूसरी चॉइस (Choice) इनसान के लिये नहीं है।
.
.
.
आदरणीय डॉक्टर अयाज अहमद साहब,
बहुत बहुत धन्यवाद इस पोस्ट के लिये...जरूरी थी यह...कुदरत में उपलब्ध सर्वश्रेष्ठ प्रोटीन है अंडा...
आप सही कह रहे हैं कि मांसाहार के खिलाफ दुष्प्रचार हो रहा है...धार्मिक कारण तो हैं ही...परंतु सबसे बड़ा कारण है बाजार...सीधे सबूत तो नहीं मिलेंगे... पर यह छुपा नहीं है कि डेयरी लॉबी और दालों के बड़े इम्पोर्टर/सटोरिये इसके पीछे हैं...आप हाल के सालों में देखिये मिल्क प्रोडक्ट्स व दालों के दाम असामान्य तरीके से बढ़े हैं... यही लोग मांसाहार व अंडे खाने के विरूद्ध प्रचार से लाभान्वित होते हैं।
आभार!
...
मांस से भिन्न जिन खाद्य चीज़ों के बारे में समझा जाता है कि उनमें बड़ी मात्रा में प्रोटीन होता है मस्लन दूध, दही, पनीर वग़ैरह, वे सब बैक्टीरिया की सूक्ष्म प्रक्रिया के ज़रिये ही अंजाम पाता है। बैक्टीरिया का अमल अगर उसके अन्दर न हो तो किसी भी ग़ैर-मांसीय भोजन से प्रोटीन हासिल नहीं किया जा सकता।
बैक्टीरिया को विज्ञान की भाषा में माइक्रो-आर्गेनिज़्म कहा जाता है, यानि सूक्ष्म जीव। इसके मुक़ाबले में बकरी और भेड़ वग़ैरह की हैसियत मैक्रो-आर्गेनिज़्म की है यानि विशाल जीव। इस हक़ीक़त को सामने रखिये तो यह कहना बिल्कुल सही होगा कि हर आदमी व्यवहारतः मांसाहार कर रहा है। फ़र्क़ सिर्फ़ यह है कि तथाकथित शाकाहारी उसे सूक्ष्म जीवों के रूप में ले रहे हैं और नॉन-वेजिटेरियन लोग उसे बड़े जीवों के रूप में ले रहे हैं।
@ प्रवीण शाह साहब आपने बिल्कुल सही लिखा ये सब इन्ही लोगों का किया धरा है जो मांसाहार का विरोध मे इस तरह का दुष्प्रचार करते है और लोगों को भ्रम मे डालकर कुपोषण का शिकार कर देते है
काश अजन्मे अविनाशी तक पहुँचने का साधन बन जाये जन्माष्टमी
http://siratalmustaqueem.blogspot.com/2010/09/blog-post.html
आपने अच्छी बातें लिखी है, आप इतने इल्म वाले लगते हैं, लेकिन क्या आपको भंदाफोदु नाम के ब्लॉग में लिखी जा रही लोगो को बेवक़ूफ़ बनाने वाली बैटन के बारे में जानकारी नहीं है? आप लोगो को उसका डट कर जवाब देना चाहिए.
सत्यार्थ प्रकाशः समीक्षा की समीक्षा
किताब पर मेरे ब्लाग पर आपके विचार जानना चाहूंगा
Post a Comment